सिंधु घाटी सभ्यता का सम्पूर्ण इतिहास /Paper -1

परिचय-

भारत के इतिहास में सिंधु घाटी सभ्यता प्रथम नगरीय सभ्यता थी इस सभ्यता की खुदाई सबसे पहले वर्तमान पाकिस्तान में स्थित ‘हड़प्पा’ नामक स्थल पर हुई थी। अतः इसे ‘हड़प्पा सभ्यता’ भी कहा गया। खुदाई में प्राप्त हुए अवशेषों के रेडियोकार्बन C14 जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा सिंधु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2400 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व मानी गयी है। इसका विस्तार त्रिभुजाकार है। इस सभ्यता की खोज का श्रेय ‘रायबहादुर दयाराम साहनी’ को जाता है। उन्होंने ही पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक ‘सर जॉन मार्शल’ के निर्देशन में 1921 में इस स्थान की खुदाई करवायी थी। 

यह सभ्यता दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग मैं फैली हुई थी,जो कि वर्तमान में पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है। यह सभ्यता मिस्र, मेसोपोटामिया, भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी। यहाँ के  लोगों की सोच अत्यंत विकसित थी। उन्होंने पक्के मकानों में रहना आरंभ कर दिया था। चूँकि इस सभ्यता का विकास सिंधु नदी व उसकी सहायक नदियों के आस पास के क्षेत्र में हुआ था, इसीलिए इसे ‘सिंधु घाटी सभ्यता’ का नाम दिया गया है। 

काल खंड- 

यदि हम सिंधु घाटी सभ्यता के कालखंड के बारे में बात करें तो इसके निर्धारण को लेकर विभिन्न विद्वानों के बीच गंभीर मतभेद हैं | उन्होंने सिंधु घाटी सभ्यता को तीन चरणों में विभक्त किया है, जो इस प्रकार हैं | 

  1. प्रारंभिक अथवा प्राक् हड़प्पा संस्कृति : 3200  ई.पू. से 2600 ई.पू. 
  2. परिपक्व हड़प्पा सभ्यता : 2600 ई.पू. से 1900 ई.पू. 
  3. उत्तरवर्ती अथवा परवर्ती हड़प्पा संस्कृति : 1900 ई.पू. से 1300 ई.पू.
सिंधु घाटी सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता

क्षेत्रीय विस्तार-

सिंधु घाटी सभ्यता काफी विस्तृत सभ्यता थी। यह सभ्यता भारत भूमि पर लगभग 13 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में त्रिभुजाकार स्वरूप में फैली हुई थी। जो उत्तर में ‘मांडा’ (जम्मू कश्मीर) तक, दक्षिण में ‘दैमाबाद’ (महाराष्ट्र) तक, पूर्व में ‘आलमगीरपुर’ (उत्तर प्रदेश) तक और पश्चिम में ‘सुत्कागेंडोर’ (पाकिस्तान) तक फैली हुई थी।

अब तक इस सभ्यता के अवशेष पाकिस्तान और भारत के पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के भागों में पाए जा चुके हैं। वर्तमान में भी सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों की खुदाई जारी है।

सैंधव सभ्यता के प्रमुख स्थल, नदी , स्थान एवं उत्खननकर्ता:-

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प्रमुख स्थल  नदी  स्थान 

उत्खननकर्ता 

1.  हड़प्पा  रावी  पाकिस्तान  दयाराम साहनी (1921), माधोस्वरूप वत्स (1926), व्हीलर (1946)
2.  मोहनजोदड़ो  सिंधु  पाकिस्तान  राखालदास बनर्जी (1922), मैके (1927), व्हीलर (1930)
3.  चन्हूदड़ो  सिंधु  पाकिस्तान  मैके (1925), एन. जी. मजूमदार (1931)    
4.  कालीबंगन  घग्घर  राजस्थान  अमलानंद घोष (1951), बी.वी.लाल एवं बी.के.थापर (1961)     
5.  कोटदीजी  सिंधु  सिंध प्रांत का खैरपुर स्थान  फजल अहमद (1953)
6.  रंगपुर  मादर  गुजरात  रंगनाथ राव (1953-54)
7.  रोपड़  सतलज  पंजाब  यज्ञदत्त शर्मा (1953-56)
8.  लोथल  भोगवा  गुजरात  रंगनाथ राव (1954)
9.  आलमगीरपुर  हिंडन  उत्तर प्रदेश  यज्ञदत्त शर्मा (1958)
10.  सुतकांगेडोर    दाश्क  पाकिस्तान  ऑरेल स्टाइन (1927)  
11.  बनमाली  रंगोई  हरियाणा  रवींद्र सिंह विष्ट (1974)
12.  धौलावीरा  लुनी  गुजरात  जे.पी.जोशी (1967-1968), रवींद्र सिंह विष्ट (1990-91)   
13.  सोत्काह   शादिकौर  द. ब्लूचिस्तान  जॉर्ज डेल्स (1962)

प्रमुख स्थल- 

सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित कुछ प्रमुख स्थल:- 

हड़प्पा:

  • हड़प्पा स्थल की विधिवत खुदाई 1921 ईस्वी में श्री दयाराम साहनी के नेतृत्व में आरंभ हुई थी।
  • यह रावी नदी के तट पर, वर्तमान पाकिस्तान में पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में स्थित है। जहाँ सबसे पहले उत्खनन कार्य किया गया था।
  • हड़प्पा से हमें एक विशाल अन्नागार के साक्ष्य भी मिले हैं। इस अन्नागार में 6-6 की 2 पंक्तियों में कुल 12 विशाल कक्ष निर्मित पाए गए हैं। यह सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में प्राप्त हुई तमाम संरचनाओं में दूसरी सबसे बड़ी संरचना है।
  • हड़प्पा से हमें एक पीतल की इक्का गाड़ी, स्त्री के गर्भ से निकलते हुए पौधे वाली एक मृण्मूर्ति एवं सम्पूर्ण सिंधु घाटी सभ्यता में हमें सबसे अधिक अभिलेख युक्त मुहरें यहीं से ही प्राप्त हुए हैं।

मोहनजोदड़ो:

  • मोहनजोदड़ो  के उत्खनन का कार्य 1922 ईस्वी में श्री राखाल दास बनर्जी के नेतृत्व में हुआ था।
  • यह सिंधु नदी के तट पर वर्तमान पाकिस्तान में सिंध के लरकाना जिले में स्थित है। मोहनजोदड़ो का अर्थ है- ‘मृतकों का टीला’।
  • मोहनजोदड़ो से हमें कांसे की नर्तकी की मूर्ति, मुद्रा पर अंकित पशुपति नाथ की मूर्ति, सूती कपड़ा, अलंकृत दाढ़ी वाला पुजारी, इत्यादि प्रमुख अवशेष प्राप्त हुए हैं। 
  • एक विशाल स्नानागार के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जिसकी लम्बाई 54 .85 मीटर और चौड़ाई 32 .90 मीटर है। इसमें बने स्नान कुंड की लम्बाई 11 .88 मीटर और चौड़ाई 7.01 मीटर है। यहाँ सड़कों का जाल बिछा हुआ था जो ग्रिड प्रारूप में बनी हुई थीं। यहाँ से मिली सबसे बड़ी इमारत विशाल अन्नागार है।
  • सर्वाधिक मुहरें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई हैं। (Note – हड़प्पा स्थल से सर्वाधिक अभिलेख युक्त मुहरें प्राप्त हुई हैं।)

चन्हूदड़ो:

  • चन्हूदड़ो के उत्खनन का कार्य 1935 ईस्वी में अर्नेस्ट मैके के नेतृत्व में किया गया था।
  • यह सिंधु नदी के तट पर वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है। 
  • इस स्थल से विभिन्न प्रकार के मनके, उपकरण, मुहरें इत्यादि प्राप्त हुई हैं। इस आधार पर विद्वानों द्वारा अनुमान लगाया जाता है की चन्हूदड़ो में मनके निर्माण का कार्य होता था। इसीलिए इस स्थल को सिंधु घाटी सभ्यता का औद्योगिक केंद्र भी माना जाता है।
  • उत्तर-हड़प्पा (झूकर एवं झांगर संस्कृति) संस्कृति इस स्थल पर विकसित हुई। इस स्थल पर बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते का साक्ष्य मिला है। सौंदर्य प्रसाधन में लिपस्टिक का प्रमाण मिला है। चांहुदड़ो एकमात्र ऐसा स्थल है जहाँ से वक्राकार ईंटें मिली हैं।

कालीबंगा:

  • इस क्षेत्र के उत्खननकर्ता अमलानन्द घोष (1953) और बी.के. थापर (1960) हैं। 
  • कालीबंगा का अर्थ है ‘काले रंग की चूड़ियाँ’। यह घग्गर नदी के तट पर यह राजस्थान के गंगानगर जिले में स्थित है। इसके दुर्गक्षेत्र का आकार वर्गाकार है।
  • कालीबंगा नामक स्थल से जुते हुए खेत, एक साथ दो फसलों की बुवाई, अग्नि कुंड के साथ ही बेलनाकर मुहरों, अलंकृत ईंटों के साक्ष्य भी  मिले हैं।
  • यहाँ से उत्तम जल निकासी प्रणाली के साक्ष्य नहीं मिलते हैं।

लोथल:

  • लोथल वर्तमान में गुजरात के अहमदाबाद में भोगवा नदी के तट पर स्थित है। जिसकी खोज 1957 ईस्वी में रंगनाथ राव द्वारा की गई थी।
  • यह सिंधु घाटी सभ्यता का यह स्थल एक प्रमुख बंदरगाह स्थल था। इस बंदरगाह स्थल लोथल के पूर्वी भाग में एक विशाल गोदीवाड़ा (डॉकयार्ड) मिला है।
  • लोथल से अग्निवेदिका, चावल, घोड़े की लघु मृण्मूर्ति तथा हाथी दांत का एक स्केल के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। 
  • यहाँ फारस की एक मुहर प्राप्त होने के साथ – साथ तीन युग्मित समाधि (तीनों जुड़े) के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। 
  • लोथल में मकान के दरवाजों का मुख्य सड़क की ओर खुलने का प्रमाण मिलता है। अनाज पीसने की चक्की का साक्ष्य भी मिलता है। लोथल से प्राप्त एक भांड पर ही चालाक लोमड़ी की कथा अंकित है।

धौलावीरा:

  • धौलावीरा की खोज जगपति जोशी ने 1967-68 में की परन्तु इसका विस्तृत उत्खनन रवींद्र सिंह विष्ट के द्वारा किया गया।
  • यह गुजरात के कच्छ जिले की भचाऊ तहसील में मानहर व मानसर नदियों के पास स्थित है।
  • अन्य सिंधु घाटी सभ्यता कालीन स्थलों के विपरीत नगर का विभाजन तीन हिस्सों में मिलता है। सिंधु घाटी सभ्यता कालीन अन्य नगरों का विभाजन दो हिस्सों में किया गया था।
  • धौलावीरा में बाँध अथवा कृत्रिम जलाशय के साक्ष्य मिले हैं। जिससे यह सिद्ध होता है कि इस नगर में जल प्रबंधन की उत्कृष्ट व्यवस्था मौजूद थी।

राखीगढ़ी:

  • इसका उत्खनन व्यापक पैमाने पर 1997-99 के दौरान अमरेन्द्र नाथ के द्वारा किया गया।
  • हरियाणा के हिसार जिले में सरस्वती तथा दुहद्वती नदियों के शुष्क क्षेत्र में राखीगढ़ी, सिन्धु सभ्यता का भारतीय क्षेत्र में धौलावीरा के बाद, दूसरा विशालकाय नगर है।
  • राखीगढ़ी से प्राक हड़प्पा एंव परिपक्व हड़प्पा युग इन दोनों कालों के प्रमाण मिले हैं।

नगर नियोजन- 

सिंधु घाटी सभ्यता में नगर नियोजन उस काल के सभी सभ्यताओं से उन्नत थी जैसे:-

  • सिंधु घाटी सभ्यता/हड़प्पा सभ्यता अपने विकसित नगर नियोजन के लिए ही जानी जाती थी।
  • मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगरों में अपने- अपने दुर्ग थे जो नगर से कुछ ऊँचाई पर स्थित होते थे । जिसमें अनुमानतः उच्च वर्ग के लोग निवास करते थें।
  • प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक निम्न स्तर का शहर था जहां ईंटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे।
  • नगर को दो हिस्सों में विभाजित किया जाता था। एक ‘पश्चिमी टीला’ होता था, जिसे ‘दुर्ग’ कहते थे, जबकि दूसरा हिस्सा ‘पूर्वी टीला’ होता था, जिसे ‘निचला नगर’ कहते थे।
  • सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं और इस प्रकार से नगर योजना एक ग्रिड पद्धति अर्थात् जाल पद्धति पर आधारित थी।
  • भवन निर्माण के लिए पक्की ईंटों का प्रयोग किया जाता था, जो हड़प्पा सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता थी। सिंधु घाटी सभ्यता कालीन प्रत्येक घर में एक रसोई घर, प्रांगण और एक स्नानागार होता था।
  • अन्नागारों का निर्माण भी हड़प्पा सभ्यता के नगरों की विशेषता थी।
  • सिंधु सभ्यता की जल निकासी प्रणाली काफ़ी उत्तम थी पूरे नगर में नालियों का जाल बिछा हुआ था।
  • कालीबंगां के अनेक घरों में अपने-अपने कुएं थे। घरों का पानी बहकर सड़कों तक आता जहां इनके नीचे मोरियां (नालियां) बनी थीं। अक्सर ये मोरियां ईंटों और पत्थर की सिल्लियों से ढकीं होती थीं। सड़कों की इन मोरियों में सोखते भी बने होते थे।

कृषि-

  • कृषि और पशुपालन सिंधु घाटी सभ्यता/हड़प्पा सभ्यता सभ्यता के लोगो के मुख्या पेशे थें।
  • इस सभ्यता के लोगों ने ही सर्वप्रथम कपास की खेती प्रारंभ की थी।
  • सिन्धु सभ्यता के समय लोगों को कृषि के लिए सिंचाई के भरपूर साधन प्राप्त थे। यहाँ मूसलाधार बारिश व सिन्धु जैसी सहायक नदियाँ थीं जो कृषि के लिए उपजाऊ मिटटी अपने साथ बहा कर लाती थीं।
  • प्राप्त अवशेषों से पता चला है कि सिंधु घाटी के लोग गेहूँ, जौ, सरसों, तिल,तरबूज, खरबूजा, कपास, मटर, मसूर आदि का उत्पादन करते थें। गुजरात के कुछ स्थानों से बाजरा उत्पादन के संकेत भी मिले हैं,जबकि यहां चावल के प्रयोग के साक्ष्य बहुत ही काम मिले हैं।
  • बलूचिस्तान व अफगानिस्तान के क्षेत्र में उस समय बाँध बना कर पानी को भविष्य में उपयोग के लिए संरक्षित कर के रखते थे। नहरों के अवशेष हड़प्पाई स्थल शोर्तुगई अफगानिस्तान में पाए गए हैं ,लेकिन पंजाब और सिंध में नहीं।
  • कालीबंगा में जूते हुए खेत के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जिससे पता पता चलता है कि राजस्थान में इस काल में लोग हल से परिचित थें।

सामाजिक स्थिति-

  • खुदाई के दौरान मिले मातृदेवी की मूर्तिओं से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह  समाज मातृसत्तात्मक रहा होगा।
  • इतिहासकारों के अनुसार, इनका समाज चार वर्गों में विभक्त था- विद्वान, योद्धा, श्रमिक और व्यापारी।
  • यहाँ के लोग शांतिप्रिय लोग थे। क्योंकि यहाँ से तलवार, ढाल, शिरस्त्राण, कवच इत्यादि के साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं।
  • ये लोग शाकाहार और माँसाहार, दोनों ही तरह के भोजन का प्रयोग करते थे।
  • ये ऊनी और सूती, दोनों ही प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करते थे। पुरुष और महिलाएँ, दोनों ही आभूषण पहनते थे।
  • आठ हजार वर्ष पूर्व भी सिंधु घाटी सभ्यता के लोग धर्म, ज्योतिष और विज्ञान की अच्छी समझ रखते थे।
  • यदि हम शासक वर्ग की बात करें तो कुछ पुरातत्त्वविदों की राय में हड़प्पा सभ्यता में कोई शासक वर्ग नहीं था और समाज के हर व्यक्ति को समान दर्जा प्राप्त था तथा कुछ पुरातत्त्वविदों की राय में हड़प्पा सभ्यता में कई शासक वर्ग मौजूद थे ,जो विभिन्न हड़प्पाई शहरों में शासन करते थे।
  • पर्दा-प्रथा एवं वेश्यावृत्ति सैंधव सभ्यता में प्रचलित थी।
  • शवों को जलाने एवं गाड़ने यानी दोनों प्रथाएं प्रचलित थीं । हड़प्पा में शवों को दफनाने जबकि मोहनजोदड़ो में जलाने की प्रथा विद्यमान थी। लोथल एवं कालीबंगा में युग्म समाधियां मिली हैं।

शिल्पकला एवं उद्योग-

  • हड़प्पा सभ्यता एक कांस्य युगीन सभ्यता थी। यहां के लोग कांसा के उपयोग से भली भांति परिचित थें 
  • हड़प्पाई लोग लोहे के प्रयोग से परिचित नहीं थे और संभवतः उन्हें तलवार के विषय में भी जानकारी नहीं थी।
  • सिंधु घाटी सभ्यता में लोग मनका, सीप बनाने, मृदभांड, कपड़ा उद्योग में कार्यरत रहते थे। 
    • मनका बनाने के अवशेष में मोतियों के अवशेष लोथल व चनहूदड़ो से प्राप्त होते हैं। सीपों के अवशेष बालकोट व लोथल से प्राप्त हुए हैं। मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) में लाल मिट्टी व काली मिट्टी के बर्तनों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • कपड़ा उद्योग में उन्हें साधारण सूती वस्त्र व कशिदाकारी वाले कपड़े बनाते थे। मोहनजोदड़ो से सूती वस्त्रों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • उस समय लोग सोने-चांदी व अन्य बेशकीमती पत्थरों के बने हुए गहने पहना करते थे।
  • ईंट निर्मित बड़ी -बड़ी संरचनाओं (जैसे – अन्नागार, स्नानागार और दुर्ग)के कारण राजमिस्त्री वर्ग के अस्तित्व का पता चलता है।
  • हड़प्पाई नाव बनाने की विधि, मुहरें बनाने की विधि से भली- भाँति परिचित थे। टेराकोटा की मूर्तियों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता की महत्त्वपूर्ण शिल्प विशेषता थी।

सिंधु घाटी सभ्यता

व्यापार एवं वाणिज्य-

  • सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान आंतरिक और बाह्य दोनों ही व्यापार समृद्ध अवस्था में थे। सुमेरियन सभ्यता के लेखों से ज्ञात होता है कि विदेशों में सिंधु सभ्यता के व्यापारियों को मेलुहा के नाम से जाना जाता था।
  • लोथल से हमें फारस की मुहरें प्राप्त होती हैं तथा कालीबंगा से बेलनाकार मुहरें प्राप्त होती हैं। ये सभी प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की ओर इशारा करते हैं।
  • यहाँ के लोग पत्थर, धातु, शल्क/हड्डी आदि का व्यापर करते थे। सील एकरूप लिपि व मानकीकृत मापतोल के प्रमाण मिले थे।
  • हड़प्पा काल में विदेशी वयापार निम्न देशों के साथ हुआ करता था:-
    • अफगानिस्तान
    • ईरान
    • पर्शिया की खाड़ी (दिलमुन)
    • मिस्त्र
    • मेसोपोटामिया

धार्मिक जीवन-

  • सिंधु घाटी सभ्यता में मंदिरों के साक्ष्य नहीं प्राप्त हुए हैं परंतु हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो से असंख्य देवियों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। खुदाई के दौरान मिली एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है। इससे यह मालूम होता है कि यहां के लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे और उनकी पूजा उसी तरह करते थे जिस तरह मिस्र के लोग नील नदी की देवी आइसिस की।
  • मुहरों पर प्राप्त हुए पीपल के पत्तों के निशान और नागों के अंकन के आधार पर यह कहा जा सकता  वृक्षों तथा सांपों की भी पूजा करते थें। 
  • पुरुष देवता के रूप में मुहरों पर तीन शृंगी चित्र पाए गए हैं जो कि योगी की मुद्रा में बैठे हुए हैं।देवता के एक तरफ हाथी, एक तरफ बाघ, एक तरफ गैंडा तथा उनके सिंहासन के पीछे भैंसा का चित्र बनाया गया है। उनके पैरों के पास दो हिरण के चित्र है। चित्रित भगवान की मूर्ति को पशुपतिनाथ महादेव की संज्ञा दी गई है।
  • स्वस्तिक चिह्न भी सिंधु सभ्यता की ही देन है, जिससे उस काल सूर्योपासना का अनुमान लगाया जा सकता है।
  • पशुओं में एक सींग वाला गैंडा तथा कूबड़ वाला सांड, इस सभ्यता को लोगों के लिए पूजनीय था।
  • लोथल, कालीबंगा आदि जगहों पर हवन कुण्ड मिले है जो प्रमाणित करता है कि ये लोग अग्नि की पूजा भी करते थें। 
  • खुदाई के दौरान अनेक पत्थरों पर लिंग तथा स्त्री जनन अंगों के चित्र पाए गए हैं जो की लिंग पूजा को प्रमाणित करता है।

लिपि-

  • सिंधु लिपि का नमूना सर्वप्रथम 1853 में प्राप्त हुआ और 1923 तक पूरी लिपि प्राप्त कर ली गई थी।
  • सिंधु सभ्यता की लिपि भावचित्रात्मक है जिसका हर अक्षर किसी वस्तु, ध्वनि या भाव का सूचक है।
  • यह लिपि दायीं से बायी और लिखी जाती थी। जब अभिलेन एक से अधिक पंक्तियों का होता था तो पहली पंक्ति दायीं से बायीं और दूसरी बाची से दायीं और लिखी जाती थी।
  • इन लिपि में सबसे ज्यादा अंग्रेजी के ‘U’ अक्षर का ज्यादा उपयोग हुआ है। चित्रों में सबसे ज्यादा मछली का चित्र प्राप्त हुआ है।
  • इसके लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है क्यूंकि इसे समझने के लिए हमारे पास आवश्यक श्रोत उपलब्ध नहीं है।

सभ्यता का पतन

  • सिंधु घाटी सभ्यता के पतन को लेकर विभिन्न विद्वानों के अलग- अलग मत हैं।
  • गार्डन चाइल्ड, मॉर्टिमर व्हीलर, पिग्गट महोदय जैसे विद्वानों ने सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण आर्य आक्रमण को माना था परन्तु बाद की संस्कृतियों में ऐसे कई तत्व पाए गए जिनसे यह सिद्ध होता है कि यह सभ्यता आक्रमण के कारण विलुप्त नहीं हुई थी।
  • कामादेज ने इस सभ्यता के अंत का कारण मलेरिया बताया है।वहीं निमिथा देव ने प्राकृतिक आपदा को मुख्य कारण बताया है।
  • इसके अलावा, विभिन्न विद्वान जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक आपदा, पारिस्थितिकी असंतुलन, प्रशासनिक शिथिलता इत्यादि को सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के लिए उत्तरदायी कारक मानते हैं।


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Q. सिंधु घाटी सभ्यता की खोज किसने की थी ? 

Ans. सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज ‘रायबहादुर दयाराम साहनी’ ने 1921 में की थी।

Q. सिंधु घाटी सभ्यता कैसी सभ्यता थी ?

Ans. सिंधु घाटी सभ्यता काफी उन्नत एवं नगरीय सभ्यता थी।

Q. सिंधु घाटी सभ्यता का बंदरगाह नगर कौन सा था ?

Ans. लोथल (गुजरात) सिंधु घाटी सभ्यता का बंदरगाह नगर था। 

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