जो बदलाव आप दूसरों में देखना चाहते हैं पहले स्वयं में लाइए : गांधी जी -निबंध (2023)

संपूर्ण निबंध लेखन – “जो बदलाव आप दूसरों में देखना चाहते हैं पहले स्वयं में लाइए।”

                                                                                   – गांधी जी।   

“दूसरों में बुराई देखने से पूर्व,मनुष्य को यह जान लेना चाहिए कहीं उसमें तो बुराई नहीं है, 

यदि वह स्वयं ही बुरा है तो उसे दूसरों को बुरा कहने का कोई अधिकार नहीं है।” 

                                                    – संत कबीर

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जो समाज में रहते हुए अनेक प्रकार की बुराइयों और अच्छाइयों से घिरा हुआ रहता है। मगर उसकी एक स्वाभाविक प्रवृत्ति यह है कि वह किसी भी व्यक्ति के अच्छाइयों से कम परंतु बुराइयों से ज्यादा एवं जल्दी प्रभावित हो जाता है।

ठीक  इसी प्रकार की घटनाएं ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन काल के दौरान हुई जब कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हुए जिन्होंने ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ आवाज उठाते हुए उन्हीं की नीतियों द्वारा अर्थात हिंसात्मक गतिविधियों द्वारा भारत को स्वतंत्रता दिलाने का प्रयास किया। परंतु उसी समय महात्मा गांधी जो अहिंसा के पुजारी थें वे इस बात को भी भली-भांति समझते थे कि समाज में हिंसात्मक तरीके से बदलाव द्वारा एक बेहतर लोकतांत्रिक समाज की स्थापना एक कल्पना मात्र होगी अतः इन परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने विचार दिया कि:-

“जो बदलाव आप दूसरों में देखना चाहते हैं पहले स्वयं में लाइए।”  – गांधी जी। 

अर्थात एक स्वतंत्र एवं लोकतांत्रिक समाज की स्थापना तभी संभव है जब लोगों के बीच आपसी समन्वय हो, द्वेष की भावना न हो, साथ ही ऊंच-नीच, छुआछूत जैसी जातिगत भावनाएं भी ना हो।अतः एक दूसरे के जाति, धर्म एवं संस्कृति के प्रति आदर एवं सम्मान की भावना द्वारा ही हम एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।  

इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए संविधान निर्माताओं ने शिक्षा का अधिकार, अस्पृश्यता का अंत, वाक्य एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, तथा जाति, धर्म, लिंग, मूलवंश, या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव आदि जैसे मूल्यों को ध्यान में रखते हुए संविधान का निर्माण किया ताकि लोगों के हितों की रक्षा की जा सके। जिससे भारत भविष्य में वैश्विक मंच पर अन्य विकसित देशों के समानांतर खड़ा हो सके।

हालांकि इन नीतियों का असर समाज पर दिखता तो है परंतु उस रूप में नहीं दिखता जिससे समाज में व्यापक बदलाव आ सके। वर्तमान समय में भी यहां कई प्रकार के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समस्याएं व्याप्त है जैसे महिला सुरक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार इत्यादि।

(“जो बदलाव आप दूसरों में देखना चाहते हैं पहले स्वयं में लाइए”)

महिला सुरक्षा

आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही हैं। चाहे वह राजनीतिक क्षेत्र हो, शिक्षा, खेल, रक्षा क्षेत्र या खुद का कारोबार हो परंतु यहां सबसे बड़ा मुद्दा है तो महिला सुरक्षा का। पिछले कुछ समय से महिलाओं पर किए गए अत्याचारों जैसे – तेजाब फेंकना, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, कन्या भ्रूण हत्या आदि वारदातों में काफी वृद्धि हुई है। जिसके कारण समाज का हर एक वर्ग चिंतित हैं।

यदि पिछली कुछ घटनाओं जैसे तीन तलाक का मामला एवं बहुचर्चित बाबाओं द्वारा अपने ही आश्रम की लड़कियों के साथ बलात्कार जैसे मामले, इसके साथ ही कई बार महिलाओं तथा लड़कियों से छेड़छाड़ के मामले सामने आते हैं। जिसमें लड़कियों को ही गलत बताया जाता है, उनके पहनावे तथा आचरण पर सवाल उठाया जाता है। इस बात को क्यों नहीं समझते चाहे महिला हो या पुरुष दोनों ही समाज का एक महत्वपूर्ण अंग हैं, तो फिर महिलाओं के प्रति इतना भेदभावपूर्ण रवैया क्यों?

ऐसे में  हम समाज में सकारात्मक बदलाव की कल्पना कैसे कर सकते हैं अतः जरूरत है कि “जो बदलाव आप दूसरों में देखना चाहते हैं पहले स्वयं में लाइए” अर्थात दूसरों में बदलाव को देखने से पहले स्वयं में बदलाव लाएं ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी में सबके लिए एक समान आदर एवं सम्मान की भावना हो।

गरीबी

हम सभी का यह मानना है कि गरीबी का सबसे मुख्य कारण जनसंख्या वृद्धि है। परंतु जनसंख्या वृद्धि का प्रमुख कारण क्या है? – कहीं न कहीं समाज में निम्न तथा पिछड़े वर्ग के लोगों का विश्वास श्रम बल को अधिक से अधिक बढ़ाने पर रहता है अर्थात एक परिवार में जितने ज्यादा कमाने वाले व्यक्ति होंगे वहां पैसों की आमदनी उतनी ही ज्यादा होगी। इनकी यही सोच जनसंख्या वृद्धि का कारण बनती है जो आगे चलकर लैंगिक असमानता, बेरोजगारी तथा भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं को उत्पन्न करती हैं।

इसके लिए लोग सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं कि, सरकार को गरीबी उन्मूलन से जुड़े प्रयासों पर जोर देना चाहिए। परन्तु हम भूल जाते हैं कि “जो बदलाव आप दूसरों में देखना चाहते हैं पहले स्वयं में लाइए” अर्थात दूसरों में बदलाव लाने से पहले स्वयं में बदलाव लाए। अतः सरकार को गरीबी उन्मूलन से जुड़े प्रयासों से ज्यादा जनसंख्या नियंत्रण पर जोर देना चाहिए ताकि गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं पर नियंत्रण पाया जा सके। 

भ्रष्टाचार

♦वर्तमान समय में भारत में भ्रष्टाचार की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। कहीं लोग अपने निजी फायदे के लिए सार्वजनिक संपत्ति शक्ति और सत्ता का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं तो कहीं रिश्वत, चुनाव में धांधली, हफ्ता वसूली, जबरन चंदा लेना तथा अपने विरोधियों को दबाने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति कर रहे हैं।

♦सरकार द्वारा चलाए जा रहे कई कार्यक्रम जैसे मनरेगा, मिड डे मील, सर्व शिक्षा अभियान आदि में कई बार भ्रष्टाचार से जुड़े मामले सामने आ चुके हैं। आज समाज जैसे-जैसे आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है उसमें उपभोक्तावादी प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। जिसके कारण उनमें स्वार्थ की भावना बढ़ रही है, जिससे अब अपनी उच्च जीवन शैली को बनाए रखने के लिए वह किसी भी प्रकार के गलत कार्य को करने में नहीं कतराते।

♦इसके कारण लोगों के पारिवारिक मूल्यों में भी गिरावट आयी है। हालांकि भ्रष्टाचार जैसे समस्याओं से निपटने के लिए कई कानून बनाए गए हैं, जो कागजी रूप से ज्यादा तथा व्यावहारिक रूप से कम प्रभावी हैं। अतः यह राजनीतिक आर्थिक तथा सामाजिक रूप से राष्ट्र के प्रगति और विकास में बाधा भी हैं। (“जो बदलाव आप दूसरों में देखना चाहते हैं पहले स्वयं में लाइए”)

आतंकवाद, नक्सलवाद, अलगाववाद

♦आतंकवाद, नक्सलवाद तथा अलगाववाद यह तीनों ही व्यक्ति के गलत सोच एवं उग्र मानसिकता का परिणाम है। जो देश को आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक के साथ – साथ मानसिक रूप से भी क्षति पहुंचाने का कार्य करता है।

♦भारत वर्तमान समय में सबसे ज्यादा पाक प्रायोजित आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है। जो 26/11, पठानकोट हमला, मुंबई बम धमाका जैसे घटनाओं के माध्यम से लोगों के मन में भय उत्पन्न करने का तथा वैश्विक मंच पर भारत की छवि खराब करने का प्रयास कर रहे हैं।

♦आतंकवाद के साथ-साथ भारत के आंतरिक भागों में नक्सलवाद की समस्या काफी बढ़ चुकी है, जो उग्र घटनाओं जैसे – पुलिस चौकी को उड़ाना तथा शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से सरकार के प्रति अपनी उदासीनता को प्रकट करते हैं। हालांकि सरकार द्वारा इन लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने तथा अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ इन तक पहुंचने के लिए कई प्रकार की नीतियां बनाई जा रही हैं।

◊जिसका परिणाम छत्तीसगढ़ तथा झारखंड में कई नक्सलवादियों के आत्मसमर्पण के रूप में दिख रहा है, जो यह दर्शाता है कि सरकार अपनी नीतियों में सफल हो रही है।

♦अलगाववाद – जब क्षेत्रीय शक्तियां काफी उग्र होकर एक अलग राष्ट्र की मांग करने लगती हैं, तब इस प्रकार की समस्या उत्पन्न होती हैं। कश्मीर की भी सबसे बड़ी समस्या यही थी कि पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी संगठनों द्वारा अलगाववादियों पर यह दबाव दिया जाता था कि कश्मीर में हमेशा अराजकता पूर्ण/तनावपूर्ण स्थिति बनाए रखा जाए, जिसे वैश्विक मंच पर कश्मीर समस्या दिखाकर कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाया जा सके।

♦अतः सरकार भी इन समस्याओं को भली भांति समझती है और  यही कारण है कि आज कश्मीरी युवाओं को भारतीय सेना पुलिस बल आदि में भर्ती किया जा रहा है साथ ही यहां की राजनीति एवं प्रशासनिक सेवा में भी आने की खुली छूट दी गई है ताकि वह अपने आपको अलग थलग न समझें। परंतु अब कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग बन चुका है अतः कोई भी दूसरा देश कश्मीर पर अपना दावा नहीं कर सकता। (“जो बदलाव आप दूसरों में देखना चाहते हैं पहले स्वयं में लाइए”)

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(“जो बदलाव आप दूसरों में देखना चाहते हैं पहले स्वयं में लाइए”)

अन्य:-

♦वर्तमान सरकार द्वारा 2014 में महात्मा गांधी के जन्मदिवस पर स्वच्छ भारत मिशन प्रारंभ किया गया था जिसका उद्देश्य ग्रामीण तथा शहरी सभी इलाकों, गलियों, सड़कों तथा अधोसंरचना को साफ सुथरा रखना था। इसका एक मुख्य उद्देश्य यह भी था कि देश के सभी इलाकों में शौचालय के निर्माण से खुले में शौच को कम किया या समाप्त किया जा सके। जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने में सफलता मिले।

◊इस कार्यक्रम के माध्यम से कई ग्रामीण इलाकों में शौचालय का निर्माण तो करा दिया गया परंतु उसके बावजूद लोग खुले में शौच को प्राथमिकता देते हैं, जो अनेक बीमारियों तथा पर्यावरणीय समस्या का कारण बनता है। 

♦सरकार ने इस अभियान के तहत कई इलाकों में प्लास्टिक की थैलियों को बंद करके कागज या जूट की थैलियों के इस्तेमाल का निर्देश दिया है। परंतु इसके बावजूद लोगों द्वारा प्लास्टिक धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है। जो एक चिंता का विषय है क्योंकि एक आंकड़े के अनुसार शहरी इलाकों में लगभग 60 से 70% गायों की मृत्यु प्लास्टिक खाने से होती है। साथ ही यह कई गंभीर बीमारियों को भी उत्पन्न करता है।

◊अतः जनता को सरकार का निर्देश मानते हुए प्लास्टिक के उपयोग को पूर्णतः बंद कर देना चाहिए।

♦आज देश में सांप्रदायिकता के नाम पर लगातार हो रही हिंसक घटनाएं सरकार तथा आम जनता दोनों के लिए समस्या बनी हुई है। धर्म के नाम कथित भीड़ द्वारा लोगों की हत्या करा दी जाती है जो काफी निंदनीय है। इस प्रकार की समस्याओं को देखते हुए राज्य तथा केंद्र स्तर पर कई बहस हो चुकी है। परंतु किसी एक निर्णय पर न पहुंच पाने के कारण यह घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही हैं।

◊हालांकि सरकार ने इस प्रकार के दंगों को रोकने के लिए कई कदम तो उठाए हैं, परंतु उन्हें न्याय संगत तभी बनाया जा सकता है जब पुलिस प्रशासन, सरकार तथा आम जनता अपने कर्तव्य का निर्वहन पूरी ईमानदारी से करें। 

♦“सोशल नेटवर्किंग साइट”, इंटरनेट एवं नए-नए तकनीकों के बढ़ते प्रयोग ने जहां देश विदेश के लोगों को एक साथ जोड़ने में सकारात्मक भूमिका निभाई है, वहीं इसने लोगों को वास्तविक दुनिया से वर्चुअल दुनिया की ओर शिफ्ट कर दिया है। जिससे लोगों के बीच पारिवारिक मूल्य समाप्त हो रहे हैं तथा आपसी संवाद भी काफी कम हो गया है।

◊वर्तमान समय में इसके कई बुरे परिणाम सामने आ रहे हैं और उन्हीं में से एक था ब्लू व्हेल गेम का मामला जो बच्चों के मनोस्थिति पर इस प्रकार हावी था कि इसमें दिए गए चैलेंज को पूरा करने के लिए कई बच्चों ने आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लिए और उनके अभिभावकों को इसकी जानकारी तक नहीं होती थी।

♦आज जहां लोग बाहरी दुनिया के खबरों से बखूबी रूबरू होते हैं वहीं अपने आसपास हो रही घटनाओं से बेखबर होते जा रहे हैं। लोग ऑनलाइन बैठकर एक दूसरे की कमियां निकालते हैं परंतु खुद के अंदर जो कमियां हैं उस पर कभी ध्यान नहीं देते इसलिए कहां गया है कि “जो बदलाव आप दूसरों में देखना चाहते हैं पहले स्वयं में लाइए।”

निष्कर्ष

उपरोक्त तथ्यों को देखकर यह स्पष्ट होता है कि मनुष्य जैसे – जैसे आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है वैसे – वैसे ही उसके जीवन शैली में भी बदलाव आ रहा है। व्यक्ति के पारिवारिक मूल्यों के साथ-साथ आपसी समन्वय, सौहार्द तथा प्रेम जैसी भावनाएं खत्म होती जा रही हैं। लोग समाज में नए बदलाव तो चाहते हैं परंतु उस बदलाव के लिए पहल नहीं करना चाहते जिस दिन लोगों ने दूसरों में बदलाव देखने से पहले खुद में बदलाव लाना शुरू कर दिया उसी दिन से एक नए भारत का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा अर्थात “जो बदलाव आप दूसरों में देखना चाहते हैं पहले स्वयं में लाइए। 

 

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