1857 Ka Vidroh |1857 के विद्रोह का संपूर्ण इतिहास | कारण, परिणाम और प्रभाव |

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1857 का विद्रोह (1857 Ka Vidroh)

सामान्य परिचय

भारत के इतिहास में 1857 का विद्रोह एक महत्वपूर्ण घटना थी। 29 मार्च 1857 को 34वीं इन्फेन्ट्री के एक सिपाही मंगल पांडे ने चर्बी वाले कारतूस को इस्तेमाल करने से मना कर दिया और विद्रोह करते हुए दो अंग्रेज़ अधिकारियों लेफ्टिनेंट बाग और सार्जेंट ह्यूरसन को घायल कर दिया, परिणाम स्वरूप अंग्रेजों ने मंगल पांडे को गिरफ्तार कर 8 अप्रैल को फांसी की सजा दे दी।

जिसके बाद इस क्रांति की शुरुआत 10 मई 1857 ई. को मेरठ से हुई थी, जो नवंबर – दिसंबर के मध्य तक उत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्रों (जैसे – कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों ) में फैल गया। इस विद्रोह में सैनिकों के साथ – साथ किसान, शिल्पी, देसी राजवाड़े व आम नागरिक भी शामिल थें।हालांकि इस क्रांति की शुरुआत तो एक सैन्य विद्रोह के रूप में हुई, परन्तु बाद में इसका स्वरूप बदल कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में हो गया, जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा गया।(1857 Ka Vidroh)

विद्रोह के कारण

भारतीय इतिहास में 1857 का विद्रोह एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है, जिसने अंग्रेजी शासन के समक्ष एक गंभीर चुनौती पेश किया। इस विद्रोह के कई मुख्य कारण माने जाते हैं जो निम्न है:-

राजनीतिक कारण-
  • अंग्रेजों के विस्तारवादी नीति ने से समाज के एक बड़े तबके में असंतोष था।अभी भी कई राज्य अंग्रेजों पर निर्भर थे और यह संधि समझौते का अच्छे से पालन करते थें। लेकिन डलहौजी की विलय की नीति, पेंशन बंद करने का आदेश जैसे कार्यो ने एक ही झटके में इनके नाममात्र के प्रभाव को भी समाप्त कर दिया।
  • डलहौज़ी द्वारा अपने व्यपगत के सिद्धांत का पालन करते हुए सतारा, नागपुर, संबलपुर और झाँसी जैसी कई रियासतों को अपने अधिकार में ले लिया।
  • कुछ महत्वपूर्ण शासक वंश को अपमानित करने की नीति ने भी असंतोष को बढ़ाया जैसे – डलहौजी द्वारा नानासाहेब को पेंशन न देने का आदेश, मुगल बादशाह को लाल किले से बाहर रहने की घोषणा तथा कैनिंग द्वारा मुगल बादशाह से सम्राट की पदवी छीन लिया जाना इत्यादि। 
  • डलहौजी द्वारा अवध के नवाब वाजिद अली पर कुशासन का आरोप लगाकर, अवध का विलय ब्रिटिश शासन में कर लेने के कारण अंग्रेजों के चरित्र पर भरोसा करना मुश्किल हो गया। इससे वहाँ की जनता विद्रोह पर उतर आई जैसे – सैनिक, जमींदार, किसान तथा रियासतों से संबंधित वर्ग। 
  • अफगान युद्ध (1838-42), दोनों सिख युद्ध तथा संथाल विद्रोह ने अंग्रेजों की अपराजेयता जैसी धारणा को तोड़ा और जब 1857 का विद्रोह प्रारंभ हुआ तो इन घटनाओं ने लोगों के मनोबल को बढ़ाया।
  • अंग्रेजों का विदेशीपन तथा शोषणकारी नीति ने भी लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट होकर युद्ध करने को प्रेरित किया। सरकार की नस्लीय भेदभाव की नीति, शोषक वर्ग को आरक्षण देना जैसे कार्यों से लोगों में अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा का भाव बढ़ता गया।(1857 Ka Vidroh)
आर्थिक कारण-
  • भू-राजस्व नीति के कारण किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई थी। स्थाई बंदोबस्त की नीति के तहत किसान और जमींदार भूमि पर भारी-भरकम लगान और कर वसूली के सख्त नियमों से परेशान थे। कई बार लगान समय पर न दे पाने के कारण किसानों को अपनी पुश्तैनी जमीनों से भी हाथ धोना पड़ जाता था।
  • इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के बाद मशीनों से निर्मित सस्ते एवं बेहतर गुणवत्ता वाले वस्तुओं का भारतीय उत्पाद मुकाबला नहीं कर पाए। यहां तक कि भारतीय वस्तुओं के निर्यात पर अत्यधिक शुल्क लगा दिए गए, जिससे मुनाफे की जगह नुकसान होने लगा और भारतीय व्यापार ठप पड़ने लगें।(1857 Ka Vidroh)  
  • सबसे ज्यादा नुकसान भारतीय कपड़ा उद्योग को हुआ। भारत के परंपरागत हस्तशिल्पओं का भी पतन होने लगा,  इस कारण से लोगों के रोजगार छीन गए और गरीबी तथा बेरोजगारी ने भारतीय जनता को आक्रोश से भर दिया।  
  • अंग्रेजों के विस्तारवादी नीति ने समाज के कई अन्य वर्गों को भी प्रभावित किया। रियासतों के विलय के कारण राजा या नवाब, कर्मचारी वर्ग तथा दरबार पर निर्भर होकर जीविका चलाने वाले अन्य वर्ग, कलाकार तथा विद्वान इन सब की आजीविका प्रभावित हुई इससे इनकी प्रतिष्ठा को भी ठेस पहुंची।
सामाजिक और धार्मिक कारण-
  • अंग्रेजो के द्वारा सामाजिक धार्मिक जीवन में हस्तक्षेप ने भी असंतोष को बढ़ाया। ईसाई मिशनरियों द्वारा भारतीय धर्म की निंदा करना, धर्मांतरण का प्रयास करना तथा सरकारी खर्च पर सेना व स्कूल में धर्म प्रचार करना। 
  • सरकारी नौकरियों में भी उन्हीं को पदोन्नति मिलती थी, जो ईसाई धर्म को अपनाते थें। साथ ही किसी भी उच्च पद पर आम भारतीयों की नियुक्ति नहीं की जाती थी।
  • वंशानुक्रम के हिंदू कानून को 1850 के अधिनियम द्वारा बदल दिया जाना।
  • भारतीय होने के कारण लोगों को हर जगह अपमानित किया जाना।
  •  रेलवे और टेलीग्राफ की शुरुआत ने भी भारतीयों में असंतोष को जन्म दिया, क्योंकि इनकी शुरुआत भारत में अंग्रेज़ी विस्तारवादी नीति के अंतर्गत की गई थी।
  • ब्रिटिश सरकार के द्वारा समाज सुधार (जैसे – सती प्रथा को समाप्त कर देना, बाल विवाह पर रोक लगाना इत्यादि) तथा शिक्षा के लिए किए गए प्रयास से भी, रूढ़िवादी भारतीयों के मन में यह संदेश था कि ब्रिटिश सरकार भारतीय संस्कृति और परंपरा को नष्ट करना चाहती है। (1857 Ka Vidroh)
सैनिक कारण-
  • ब्रिटिश नीतियों के कारण सैनिक वर्ग दीर्घ काल से असंतुष्ट था और उसका प्रमाण 1857 के विद्रोहों सहित, 1857 के पूर्व सैनिक विद्रोह के रूप में देखा जा सकता है। जैसे – 1764 में बंगाल में विद्रोह, 1806 में वेल्लोर में विद्रोह तथा 1824 में बैरकपुर में विद्रोह इत्यादि।
  • अंग्रेज़ो के नस्लीय व्यवहार जैसे उन्हें बात-बात पर अपमानित करना, कम वेतन देना तथा एक निश्चित पद के बाद पदोन्नति ना देना जैसे कार्यों से भी उनमें असंतोष व्याप्त था।
  • एक भारतीय सिपाही को सामान्य पद के एक यूरोपीय सिपाही से कम वेतन का भुगतान किया जाता था।
  • 1850 के दशक में कुछ कानूनों ने भी सिपाहियों में असंतोष को बढ़ाया। जैसे 1854 में डाकघर कानून के द्वारा नि:शुल्क डाक की सुविधा समाप्त कर दी गई, 1856 में एक भर्ती कानून द्वारा यह प्रावधान किया गया कि नए सैनिकों को विदेश में जाकर सेवा देनी होगी। परंतु भारतीय सैनिक समुद्र पार जाना अपने धर्म के खिलाफ समझते थे।
  • सेना में मिशनरियों के बढ़ते प्रभाव, जातीय प्रतीकों के प्रयोग पर प्रतिबंध जैसे कारकों से भी धार्मिक भावनाएं आहत हुई
तात्कालिक कारण-

1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण सिपाहियों में व्याप्त असंतोष बना। सिपाहियों में यह अफवाह फैल गई कि नई ‘एनफिल्ड’ राइफलों के कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है। इन कारतूसों को मुँह से खोलना पड़ता था, इसलिए हिंदू और मुस्लिम दोनों सिपाहियों ने ‘एनफिल्ड’ राइफलों के इस्तेमाल से इनकार कर दिया। इस घटना ने असंतोष को भड़काने में चिंगारी का कार्य किया और 1857 का विद्रोह भड़क उठा।(1857 Ka Vidroh)

विद्रोह के स्थान, नेतृत्वकर्ता और दमन (1857 Ka Vidroh)

1857 का विद्रोह इतना व्यापक था कि वह कुछ ही समय में भारत के कई भागों में फैल गया। जहां अलग-अलग नेताओं ने इसका नेतृत्व किया हालांकि लगभग 1 वर्षों तक चले इस विद्रोह को 1858 के मध्य में अंग्रेजों द्वारा दबा दिया गया। 

विद्रोह के स्थान

भारतीय नेतृत्वकर्ता ब्रिटिश अधिकारी (जिन्होंने विद्रोह को दबाया) 

दिल्ली

बहादुर शाह द्वितीय, जनरल बख्त खाँ 

जॉन निकोलसन

कानपुर

नाना साहेब सर कोलिन कैंपबेल
बरेली खान बहादुर खान

सर कोलिन कैंपबेल

लखनऊ

बेगम हजरत महल हेनरी लारेंस
झाँसी और ग्वालियर लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे

जनरल ह्यूग रोज

बिहार

कुँवर सिंह विलियम टेलर
इलाहाबाद और बनारस  मौलवी लियाकत अली

कर्नल नील 

पंजाब  आम जनता और सेना 

हेनरी लारेंस

1857 Ka Vidroh
1857 Ka Vidroh

विद्रोह का स्वरूप (1857 Ka Vidroh)

1857 के विद्रोह के चरित्र चित्रण को लेकर इतिहासकारों के मध्य आम राय नहीं है। भिन्न-भिन्न इतिहासकारों ने इसके स्वरूप पर अलग-अलग विचार दिए हैं। जैसे-

सैनिक विद्रोह – 

जॉन लॉरेंस, सीले, होम्स, सैयद अहमद खान, आदि विद्वानों ने इस विद्रोह को सैनिक विद्रोह की संज्ञा दी है। इनका कहना है कि यह एक पूर्णतया देश भक्ति सहित स्वार्थी सैनिक विद्रोह था, जिसे सर्व साधारण का समर्थन प्राप्त नहीं था। विद्रोही मुख्यतः सैनिक थें।

अनेक विद्वान इस पर आक्षेप लगाते हैं, इनका कहना है कि यह सही है कि विद्रोह का प्रारंभ सैनिकों द्वारा किया गया था। लेकिन इसके भागीदार केवल सैनिक मात्र नहीं थे बल्कि विद्रोही जनता के अनेक वर्गों (किसान, व्यापारी, राजवाड़े सामंत आदि) से आए थें, अतः इसे मात्र सैनिक विद्रोह कहना उचित नहीं है।

हिंदू – मुसलमानों का ईसाइयों के विरुद्ध धर्मयुद्ध –

एल.आर.रीज जैसे विद्वान ने इस विद्रोह को ईसाइयों के खिलाफ विद्रोह में हिंदू – मुसलमानों का धर्मयुद्ध कहा है।लेकिन इसे स्वीकार करना अत्यंत कठिन है क्यूंकि विद्रोह में धर्म का सहारा उस रूप में नहीं लिया गया है, जैसे कि कुछ विद्वान मानते हैं। सभी हिंदू मुस्लिम अंग्रेजों के विरुद्ध नहीं थे बल्कि अधिकांश ने उनका साथ भी दिया।(1857 Ka Vidroh)

सभ्यता के खिलाफ बर्बरता का युद्ध –

टी.आर.होम्स जैसे लेखक भारतीयों को असभ्य मानते हुए इसे सभ्यता के खिलाफ बर्बरता का युद्ध मानते हैं। लेकिन यह एक संकीर्ण व्याख्या है, न ही सभी भारतीय बर्बर थें और न ही सभी अंग्रेजी सभ्यता थें। विद्रोह के दौरान कुछ स्थानों पर कुछ भारतीयों द्वारा यूरोपीय लोगों की हत्या की गई तो हर्बल एवं नील जैसे जनरल द्वारा अनेक निर्दोष भारतीयों को गोली से उड़ा दिया गया। अर्थात बर्बरता का परिचय दोनों पक्षों ने दिया। 

हिंदू – मुस्लिम षड्यंत्र –

आउट्राम एवं टेलर जैसे लेखक इस विद्रोह को हिंदू – मुस्लिम षड्यंत्र का परिणाम मानते हैं। यह भी एक संकीर्ण व्याख्या है, क्यूंकि हिंदू मुसलमान ने विद्रोह के दौरान एकता बनाए रखा एवं संयुक्त मोर्चा बनाया। लेकिन इसके पीछे षड्यंत्र की भावना न होकर अंग्रेजी नीतियों व शोषण के खिलाफ रोष था।

राष्ट्रीय विद्रोह व स्वतंत्रता संग्राम –

बी.डी.सावरकर, अशोक मेहता, डिजरैली जैसे विद्वान ने इस विद्रोह को स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी है। इनका तर्क है कि विद्रोही ब्रिटिश राज्य से स्वतंत्र होना चाहते थे तथा उनमें मुक्ति की भावना निहित थी। विद्वान मानते हैं कि क्रांतियाँ प्रायः एक छोटे से वर्ग के कारण होती है जिन्हें व्यापक जनता का समर्थन प्राप्त भी होता है और नहीं भी, अमेरिका क्रांति में भी यही हुआ था। 1857 की क्रांति में वर्गीय भागीदारी भले ही काम रही हो लेकिन इसे जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त था। विद्रोह के स्वतंत्रता संग्राम के विश्लेषण पर भी अनेक विद्वानों द्वारा सवाल उठाए गए हैं।

इनका कहना है कि इसे स्वतंत्रता संग्राम तभी माना जा सकता है जब उसमें सभी वर्गों की भागीदारी हो, सभी क्षेत्रों में प्रसार हो, नेतृत्व, कार्यक्रम रणनीति व उद्देश्य विधमान हो।1857 के विद्रोह में सभी वर्गों की भागीदारी नहीं थी न ही इसमें सभी सैनिकों, रजवाड़ों, किसानों ने भाग लिया, व न ही इसका प्रसार सभी क्षेत्रों में था। यह मुख्यतः अवध में फैला था, बॉम्बे एवं मद्रास प्रेसिडेंसी में इसके असर काफी कम थे। पढ़े लिखे वर्ग ने इसमें भागीदारी नहीं की, अनेक रजवाड़ों, सामंतों, सैनिकों ने इसमें भाग तो लिया परंतु यह विद्रोह राष्ट्रीय भावना से प्रेरित होकर नहीं किया गया था।अतः इसे स्वतंत्रता संग्राम कहना उचित नहीं है।

विद्रोह से संबंधित विचार(1857 Ka Vidroh):-

विद्रोह से संबंधित विचार

संबंधित व्यक्ति
सैनिक विद्रोह

जॉन लॉरेंस, सीले, होम्स, सैयद अहमद खां 

राष्ट्रीय विद्रोह

अशोक मेहता, डिजरैली
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 

बी.डी.सावरकर

न तो प्रथम, न ही स्वतंत्रता संग्राम, न ही राष्ट्रीय विद्रोह  

आर.सी.मजूमदार
सभ्यता और बर्बरता के बीच संघर्ष

होम्स

हिंदू-मुस्लिम षड्यंत्र

आउट्राम एवं टेलर

विद्रोह की असफलता के कारण(1857 Ka Vidroh)

1857 के विद्रोह की असफलता के पीछे अनेक कारण उत्तरदायी थें जो निम्न हैं –

  • भौगोलिक दृष्टिकोण से भी देश का एक बड़ा हिस्सा विद्रोहियों के प्रभाव क्षेत्र से बाहर रहा। विद्रोह मुख्य रूप से दोआब क्षेत्र जैसे- राजपूताना, सिंध, कश्मीर और पंजाब के अधिकांश भाग तक ही सीमित था। दक्षिण भारत, पश्चिम भारत तथा पूर्वी भारत का अधिकांश हिस्सा विद्रोह के प्रभाव क्षेत्र से बाहर रहा।
  • किसी भी विद्रोह की सफलता में सामाजिक भागीदारी का विशेष महत्व होता है।1857 विद्रोह को देखें तो शिक्षित वर्ग विद्रोह के दौरान तटस्थ रहा, यह वह वर्ग था जिसमें संगठन बनाने तथा नेतृत्व करने की क्षमता थी। लेकिन उन्होंने अपने आप को इस विद्रोह से दूर रखा जिससे एक मजबूत नेतृत्व की कमी के कारण यह विद्रोह असफल रहा।
  • बड़ी संख्या में जमींदार तथा कई राज्यों के शासकों (जैसे ग्वालियर के सिंधिया, इंदौर के होल्कर, मोपला, नाभा, पटियाला, हैदराबाद आदि के शासक) ने विद्रोह के दामन में ब्रिटिश सरकार को सहयोग दिया। यहां तक कि दक्षिण भारत, पश्चिम भारत तथा पंजाब में स्थित भारतीय सेना की टुकड़ी ने भी विद्रोह के दमन में भाग लिया।
  • सभी विरोधी वर्ग के अपने अलग – अलग उद्देश्य थें। कोई भी अखिल भारतीय दृष्टिकोण से प्रेरित होकर विद्रोह में शामिल नहीं हुए इन्हें उपनिवेशवाद की समझ नहीं थी। इनके पास कोई प्रगतिशील कार्यक्रम नहीं था, केवल अंग्रेज विरोधी भावनाओं ने उन्हें आपस में जोड़ रखा था।
  • असफलता का अन्य महत्वपूर्ण कारण सैन्य कमजोरी तथा संसाधनों का अभाव था इसके विपरीत अंग्रेज़ो के पास पर्याप्त संसाधन थे और योग्य नेतृत्व भी। (1857 Ka Vidroh)

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विद्रोह का परिणाम (1857 Ka Vidroh)

ऐसा माना जाता है कि 1857 के विद्रोह ने उत्तर भारत में अंग्रेजों को लगभग उखाड़ फेंका था। फिर भी अंग्रेजों ने साहस और कूटनीति के बल पर अपने प्रभाव को स्थापित किया ऐसी स्थिति में सरकारी नीतियों में बदलाव अपेक्षित था, ताकि 1857 के विद्रोह की पुनरावृत्ति न हो इसलिए ब्रिटिश सरकार ने निम्नलिखित कदम उठाए:-

सैन्य नीति में बदलाव- 

विद्रोह के बाद सैनिक नीतियों में व्यापक बदलाव किया गया। सेना में अंग्रेजों की संख्या बढ़ाई गई बंगाल में सैन्य अनुपात 1 : 2 और बम्बई तथा मद्रास में 2 : 5 किया गया। सामरिक स्थानों पर अंग्रेजों की तैनाती की गई जैसे शस्त्रागारों तथा तोपखाना इत्यादि।अवध के सिपाहियों की भर्ती रोक दी गई और उनकी जगह मराठा, सिक्खों, व गोरखा को वरीयता दी गई।(1857 Ka Vidroh)

राजनीतिक प्रशासनिक परिवर्तन-

इस विद्रोह के बाद कंपनी राज के समाप्ति की घोषणा की गई व भारत में अंग्रेजों के प्रशासन को सीधे ब्रिटिश क्रॉउन के नियंत्रण में लाया गया। ब्रिटिश सम्राट के प्रतिनिधि के रूप में गवर्नर जनरल को वायसराय कहा जाने लगा। प्रशासनिक नियंत्रण का पुराना ढांचा बोर्ड ऑफ कंट्रोल (BOC) को समाप्त कर दिया गया उसकी जगह भारत सचिव व उसकी 15 सदस्य परिषद का निर्माण किया गया। नियंत्रण का यह ढांचा 1947 तक बना रहा।

सामाजिक सुधार के संबंध में-

अंग्रेज ने सुधार की नीति को त्याग दिया और प्रतिक्रियावादी नीति को बढ़ावा दिया भारतीय समाज को जाति और धर्म के नाम पर लड़ाने की कोशिश की गई।

भारतीय राज्यों एवं जमींदारों के प्रति नीति- 

भारतीय राजाओं और जमींदारों के द्वारा विद्रोह के दौरान अंग्रेजों को व्यापक सहयोग दिया था। और इनके सहयोग को देखते हुए अंग्रेजों ने यह घोषणा की कि बचे हुए भारतीय राज्यों का विलय नहीं होगा, इसी के साथ जमींदारों के भी अधिकार को मजबूत किया गया।

शिक्षित भारतीयों के प्रति नीति-

अंग्रेजों को 1857 के विद्रोह से भी एक बड़ा खतरा शिक्षक भारतीयों से दिखाई पड़ रहा था। इनमें राष्ट्रीय चेतना का उदय हो रहा था और प्रारंभिक दौर में ही अंग्रेजों ने इस पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की। जैसे – प्रेस पर प्रतिबंध लगाया गया, उच्च पदों से शिक्षित भारतीयों को दूर रखने की कोशिश की गई, सिविल सेवा में प्रवेश की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दी गई।

1857 के विद्रोह का भारतीयों पर प्रभाव

सभी प्रकार के नीतिगत परिवर्तन विद्रोह असफल होने के बावजूद इसमें कई सकारात्मक परिणाम आए :-

  • इस विद्रोह का नेतृत्व मुख्यतः सामंतों ने किया था शिक्षित वर्ग इससे दूर रह रहा था। इसकी असफलता ने भारतीयों को यह सीख दी की नेतृत्व पढ़े – लिखे वर्गों के हाथ में आना चाहिए। अतः शिक्षित भारतीयों ने संगठन नेतृत्व एवं एकता के महत्व को समझा।
  • अंग्रेजों की अपराजिता संबंधी धारणा और खंडित हुई तथा भविष्य में यह राष्ट्रीय आंदोलन के लिए एक प्रेरणा स्रोत का भी कार्य किया।
  • विद्रोह का भारत पर तात्कालिक प्रभाव तो महत्वपूर्ण नहीं था, लेकिन इसका दीर्घकालिक प्रभाव महत्वपूर्ण रहा। आगे राष्ट्रीय आंदोलन पर इसका प्रभाव पड़ा, विद्रोह के दौरान शहीद हुए व्यक्ति राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान प्रेरणा का स्रोत बने राष्ट्रीय नेताओं द्वारा हिंदू मुस्लिम एकता के लिए 1857 के उदाहरण पेश किए गए।

 

 

 

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