चंपारण सत्याग्रह की पृष्ठभूमि, कारण, गांधी जी की भूमिका और परिणाम | 2023

इस लेख के द्वारा हम आपको चंपारण सत्याग्रह के सम्पूर्ण इतिहास को बताने जा रहे हैं। चंपारण, बिहार के तिरहुत डिवीजन का एक जिला हैयदि भौगोलिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो तराई क्षेत्र में होने के कारण यहाँ की मृदा जलोढ़ है, जो इस क्षेत्र को काफी उपजाऊ बनाती है। ब्रिटिश काल में यहाँ लगभग 100 वर्षों से अंग्रेज़ो के द्वारा किसानों से जबरन नील की खेती करायी जा रही थी। जो तिनकठिया पद्धति के नाम से प्रचलित थी और चंपारण सत्याग्रह इसी तिनकठिया पद्धति को समाप्त करने के लिए किया गया था। 

Table of Contents

विषयसूची (Table of Contents)

  • चंपारण सत्याग्रह की पृष्ठभूमि।
  • चंपारण सत्याग्रह का कारण।
  • चंपारण सत्याग्रह क्या है?
  • गांधी जी का चंपारण आगमन। 
  • चंपारण सत्याग्रह के प्रमुख नेता।
  • चंपारण कृषि समिति का गठन।
  • चम्पारण सत्याग्रह का परिणाम। 
  • चंपारण सत्याग्रह का महत्व। 
  • निष्कर्ष
चंपारण सत्याग्रह
चंपारण सत्याग्रह

चंपारण सत्याग्रह की पृष्ठभूमि

1850 के आस-पास नील से अधिक मुनाफा होने के कारण बिहार के किसानों ने गन्ने की खेती को कम कर नील की खेती को बढ़ावा दिया क्योंकि नील की खेती का व्यापारिक महत्व अधिक था। साथ ही भारतीय नील की यूरोपीय बाजारों में भी काफी ज्यादा मांग थी, इस नील से कपड़ों में काफी अच्छी चमक आती थी तथा यूरोप में इसे ब्लू डायमंड के नाम से भी जाना जाता था। अतः इसके महत्व को देखते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी भी किसानों को नील की खेती करने के लिए काफी प्रोत्साहित करते थें।  

नील की खेती क्या होती थी? – नील एक प्रकार का ऐसा पदार्थ है जिसका इस्तेमाल वस्त्रों की रंगाई में किया जाता है। यूरोपीय बाजारों में नील की जबरदस्त मांग को देखते हुए अंग्रेजों ने भारत में नील की खेती करवानी शुरू कर दी। नील की खेती करने से जमीनें बंजर हो जाया करती थीं जिस कारण किसान उन जमीनों पर कोई अन्य खेती करने में सक्षम नहीं थें। जिससे बाद में भारतीय किसान नील की खेती करने से कतराते लगें परन्तु उन्हें बाध्य किया जाता था तथा उनसे जबरन नील की खेती कराई जाती थी

चंपारण सत्याग्रह का कारण

19वीं शताब्दी के प्रारंभ में ब्रिटिश बागान मालिकों ने किसानों के साथ एक अनुबंध करा लिया, जिसके अंतर्गत किसानों को अपनी भूमि के 3/20 भाग पर नील की खेती करना अनिवार्य था। यह व्यवस्था ‘तिनकठिया पद्धति’ के नाम से जानी जाती थी। परंतु 19वीं शताब्दी का अंत आते-आते जर्मनी में कृत्रिम (रासायनिक) रंगों का विकास हो गया, जिससे भारतीय नील की मांग यूरोपियन बाज़ारों में ख़त्म हो गई। इसके कारण चंपारण के बागान मालिक नील की खेती बंद करने को विवश हो गए।

जहाँ नील की खेती के कारण एक तरफ जहां जमीनों की उत्पादकता कम हो रही थी अर्थात जमीनें बंजर हो रही थीं। वहीं यूरोपीय बाजार में नील के घटते मांग और नील की खेती से कोई मुनाफा न होने के कारण चंपारण के किसान भी नील की खेती से छुटकारा पाना चाहते थे।अतः किसानों की परिस्थितियों को देखकर यूरोपिय बागान मालिक, किसानों की व्यवस्था का फायदा उठाना चाहते थें।

यूरोपिय बागान मालिक, किसानों को नील की खेती के तिनकठिया (3/20) पद्धति के अनुबंध से मुक्त करने के एवज में लगान तथा अन्य करों में वृद्धि कर दी जिसे चूका पाना किसानों के लिए संभव नहीं था और यहीं से चंपारण सत्याग्रह की नीव पड़ी।

चंपारण सत्याग्रह क्या है?

चंपारण सत्याग्रह को ऐतिहासिक रूप से एक महत्वपूर्ण आंदोलन माना जाता है, क्योंकि ब्रिटिश भारत में महात्मा गांधी के नेतृत्व में यह पहला सत्याग्रह आंदोलन था। चंपारण सत्याग्रह 10 अप्रैल 1917 में शुरू हुआ और मई 1917 तक चला। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश जमींदारों द्वारा जबरन नील की खेती और किसानों के शोषण का विरोध करना था। जो आगे चलकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ जिसने भारत में अहिंसक आंदोलनों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन के दौरान चम्पारण के एक किसान ’राजकुमार शुक्ल’ गांधी जी से मिले और उन्हें चंपारण में हो रही सारी घटनाओं से अवगत कराया तथा उनसे चंपारण आने का अनुरोध किया। दक्षिण अफ्रिका से वापस आकर महात्मा गांधी ने भारत में अपने पहले सत्याग्रह आन्दोलन का प्रारम्भ यहीं से किया।

चंपारण सत्याग्रह
चंपारण सत्याग्रह

गांधी जी का चंपारण आगमन 

महात्मा गांधी 10 अप्रैल 1917 को ’राजकुमार शुक्ल’ के साथ पटना पहुँचे। उसके बाद मुजफ्फरपुर पहुँच कर सबसे पहले वहाँ जे.बी. कृपलानी से मुलाकात की और यहीं पर राजेन्द्र प्रसाद की भी गांधी जी से पहली मुलाकात हुई थी। 

15 अप्रैल 1917 को महात्मा गांधी, चंपारण के मोतिहारी पहुँचे जहाँ उन्होंने किसानों से मुलाकात की और चंपारण के सभी किसानों से बात की, उन पर हो रहे अत्याचारों को सुना और उनकी परेशानियों को समझा। वह चंपारण के कई गाँवों में भी गए जहाँ उन्होंने पाया कि यूरोपीय बागान मालिक भारतीय किसानों के अशिक्षित होने का फायदा उठा रहे हैं।

गांधी जी के चंपारण पहुंचते ही वहां के तत्कालीन ब्रिटिश कमिश्नर ने उन्हें चंपारण से वापस लौट जाने का आदेश दिया परंतु गांधी जी उनके इस आदेश को न मानते हुए किसी भी प्रकार का दंड भुगतने को तैयार थें। कमिश्नर का आदेश न मानने के कारण गांधी जी पर मुकदमा भी चलाया गया। परंतु गांधी जी के पक्ष में व्यापक जनसमर्थन को तथा उनके द्वारा अहिंसक विरोध प्रदर्शन को देखते हुए उन पर लगाया गया मुकदमा वापस ले लिया गया।

हालांकि भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं के लिए यह निर्णय काफी नया था क्योंकि गांधी जी ने अंग्रेजों के अनुचित आदेश का शांतिपूर्ण ढंग से प्रतिरोध करते हुए इस आंदोलन को सफल बनाया।

गांधी जी ने 19 अप्रैल 1917 में चंपारण में अहिंसक आंदोलन शुरू किया तथा यात्राएं, जनसभाएं, स्वच्छता एवं स्वावलंबन आदि तरीकों से जनता का समर्थन प्राप्त किया अंततः फैसला किसानों के पक्ष में आया। और यहीं से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सत्याग्रह की नींव रखी गई।

चंपारण सत्याग्रह के प्रमुख नेता

चंपारण सत्याग्रह के प्रमुख नेता जो आंदोलन के दौरान गांधी जी के सहयोगी थें – ब्रज किशोर, राजेन्द्र प्रसाद, जे.बी. कृपलानी,  महादेव देसाई, नरहरि पारेख आदि। गांधी जी इन सभी नेताओं के साथ आस-पास के ग्रामीण इलाको में घूम-घूम कर ग्रामीणों से पूछताछ करते और नील की खेती के दौरान किसानों पर हो रहे शोषण को लेकर बयान दर्ज करते।

चंपारण सत्याग्रह के प्रमुख नेता जिन्होंने महात्मा गांधी को समर्थन दिया।
ब्रज किशोर
राजेन्द्र प्रसाद
जे.बी. कृपलानी
महादेव देसाई
नरहरि पारिख
श्री कृष्ण सिंह
अनुग्रह नारायण सिन्हा
मजहरूल हक

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चंपारण कृषि समिति का गठन

इसी दौरान चंपारण मामले की जाँच के लिए बिहार के तत्कालीन गवर्नर – एडवर्ड गेटे ने चंपारण के किसानों की समस्या की जाँच के लिए ’चंपारण कृषि समिति’ का गठन किया। जिसमें गांधी जी को भी सदस्यता प्रदान की गई। इस समिति के अध्यक्ष सर ‘फ्रेंक स्लाई’ थे। 

चंपारण कृषि समिति के अन्य सदस्य –

  • राजा हरिहरप्रसाद
  • डी. जे. रीड
  • सी. रैनी
  • एल. सी. अदायी
  • नारायण सिंह 

समिति ने अपनी रिपोर्ट 4 अक्टूबर, 1918 को प्रस्तुत की। साथ ही गांधी जी के पास लगभग आठ सौ किसानों के बयान अंग्रेज बागान मालिकों के खिलाफ दर्ज थें, गांधी जी ने समिति के सामने कई तर्क रखे जैसे –

  • तिनकठिया पद्धति गलत है, इसके द्वारा किसानों से जबरन नील की खेती कराई जा रही है। 
  • नील का उचित मूल्य भी किसानों को नहीं मिल जा रहा है।  
  • तिनकठिया पद्धति से मुक्त होने के लिए किसानों से अनुचित या अवैध वसूली की जा रही है जिससे गरीब किसानों का शोषण हो रहा है इत्यादि। 

इसी आधार पर गांधी जी ने इस आंदोलन को सफल बनाया। अंततः फैसला किसानों के पक्ष में आया और उन्हें अंग्रेज़ों के इस शोषणकारी तिनकठिया पद्धति से छुटकारा मिला। इसी आंदोलन में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को ’महात्मा’ की उपाधि दी थी। 

चम्पारण सत्याग्रह का परिणाम 

  • तिनकठिया पद्धति को समाप्त कर दिया गया।
  • किसानों से नील के खेती न करने के एवज़ में की गई अवैध वसूली के बदले में क्षतिपूर्ति की बात रखी गयी।
  • बागान मालिकों द्वारा किसानों से लगान तथा कर के रूप में की गई अवैध वसूली का 25 फीसदी हिस्सा वापस किसानों को लौटाया गया।
  • यूरोपीय बागान मालिकों ने लगभग 10 वर्षों के भीतर ही चंपारण भी छोड़ दिया।

चंपारण सत्याग्रह का महत्व 

  • महात्मा गांधी इस आंदोलन के कारण राष्ट्रीय स्तर के नेता बनकर उभरें। 
  • इस आंदोलन के माध्यम से भारतीय किसानों की समस्या को पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर उठाया गया।  
  • इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने अपना सहयोग प्रदान किया।
  • भारत में सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग इसी आंदोलन के दौरान किया गया। 
  • यह पहला आंदोलन था जिसमें आम जनता, जैसे – किसानों की समस्याओं को सरकार के सामने रखा गया।
  • चंपारण सत्याग्रह, आगे के राष्ट्रीय जन आंदोलनों के लिए प्रेरणा का श्रोत बना।
  • आम लोगों को अंग्रेज़ो के शोषणकारी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने का साहस मिला। 

निष्कर्ष

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि चंपारण सत्याग्रह, महात्मा गांधी द्वारा भारत में सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग था। जिसके माध्यम से गांधी जी ने न सिर्फ अहिंसात्मक विरोध प्रदर्शन करते हुए किसानों को न्याय दिलाया बल्कि इससे किसानों में आत्मविश्वास भी जगा तथा यहीं से गांधी जी का भारतीय राजनीति में आने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सत्याग्रह की नींव भी पड़ी।

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