‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ भारतीय इतिहास का काफी चर्चित आंदोलन है जिसे हम दो हिस्सों(Part)/लेखों के द्वारा पढेंगे। हमें अक्सर यूपीएससी (UPSC) तथा अन्य स्टेट पीएससी (PSC) में ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ से जुड़े कई प्रश्न देखने को मिलते हैं। अतः यहाँ हम इस आंदोलन की चर्चा काफी विस्तार पूर्वक करने जा रहे हैं। ताकि परीक्षा में आने वाले प्रश्नों को इस लेख के माध्यम से काफी सरलता तथा सटीक तरीके से हल किया जा सके।
सविनय अवज्ञा आंदोलन – सामान्य परिचय
सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत 12 मार्च 1930 में की गई थी। जिसे गांधीजी के नेतृत्व में 1930-1934 के बीच दो चरणों में चलाया गया, यह एक अखिल भारतीय जन आंदोलन था। अपने स्वरूप में यह काफी व्यापक था तथा आजादी की लड़ाई में भी इसका काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत कैसे हुई ?
- 14-16 फ़रवरी 1930, में CWC (Congress Working Committee-कांग्रेस कार्यकारिणी समिति) की बैठक साबरमती में हुई, जिसमें गांधीजी को आंदोलन चलाने की अनुमति प्रदान की गई।
- मार्च 1930, में गांधी जी ने अपने पक्ष को तार्किक बनाने के लिए सरकार को 11 सूत्रीय मांग प्रस्तुत की। कहा गया कि यदि सरकार इसे मानती है तो आंदोलन नहीं चलाया जाएगा परंतु सरकार ने इस 11 सूत्रीय मांग को मानने से इंकार कर दिया।
- नोट – 11 सूत्रीय मांग को इसी लेख में नीचे विस्तार पूर्वक बताया गया है।
- जब सरकार ने गांधी की बातों पर ध्यान नहीं दिया तब उन्होंने अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने के लिए ऐतिहासिक दांडी यात्रा की प्रारंभ की जिसके अंतर्गत उन्होंने:-
- 12 मार्च 1930 को अपने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी (नवसारी जिला समुद्र तट गुजरात ) के लिए यात्रा प्रारंभ की।
- 24 दिनों में लगभग 240 किलोमीटर की यात्रा पूरी करने के बाद 5 अप्रैल को गांधी जी दांडी पहुंचे।
- 6 अप्रैल 1930 को तड़के गांधीजी ने एक मुट्ठी नमक उठाकर नमक कानून को भंग किया। और इसी के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ हो गया।
दांडी यात्रा का महत्व1. दांडी यात्रा के कारण 24 दिनों में देश भर में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं तथा आम लोगों में काफी ऊर्जा एवं सक्रियता का संचार हुआ, आम लोगों का मनोबल बढ़ा तथा आंदोलन में भाग लेने के लिए लोगों को तैयारी करने का मौका प्राप्त हुआ। 2. दांडी यात्रा को देसी एवं विदेशी मीडिया द्वारा व्यापक कवरेज प्राप्त हुआ। इससे मूल आंदोलन के शुरुआत से पहले ही दुनिया भर में आंदोलन लोकप्रिय हो गया तथा सरकार पर नैतिक दबाव स्थापित करने में सहायता मिली। 3. यह एक अहिंसात्मक यात्रा थी, जो सामाजिक सौहार्द एवं समरसता की प्रतीक थी। इस यात्रा के दौरान हिंदू- मुस्लिम, स्वर्ण, गैर स्वर्ण, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष आदि ने इसका काफी स्वागत किया एवं आपसी एकजुटता दिखाई। जिससे आंदोलन के प्रति सभी का विश्वास मजबूत हुआ। |
सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाए जाने के कारण
- साइमन कमीशन से उत्पन्न निराशा (भारतीयों के राजनीतिक विकास के लिए कुछ विशेष नहीं किया जाना)।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित नमक कानून के कारण भारत की गरीब जनता पर बुरा प्रभाव पड़ा अतः उनमें सरकार के प्रति भरी रोष था।
- सरकार द्वारा नेहरू रिपोर्ट एवं डोमिनियन स्टेटस की मांग पर ध्यान नहीं दिया जाना।
- 1930 के आस पास देश में आर्थिक मंदी बढ़ती ही जा रही थी, इससे पूँजीपति वर्ग में काफी अशंतोष फैला हुआ था।अतः इसने भी सविनय अवज्ञा आंदोलन के शुरुआत में एक मुख्य भूमिका निभाई।
- देश में लगातार फैल रहे साम्प्रदायिकता को रोकने के लिए भी इस प्रकार के आंदोलन की जरूरत थी।
- लाहौर अधिवेशन एवं पूर्ण स्वराज के लक्ष्य प्राप्ति के लिए नया आंदोलन चलाए जाने की आवश्यकता।
- बारदोली के ‘किसान आंदोलन’ की सफलता ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन चलाने को प्रोत्साहित किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के कार्यक्रम
दांडी यात्रा की समाप्ति के बाद देशभर में अखिल भारतीय स्तर पर जोरदार तरीके से आंदोलन चल पड़ा। इसके कार्यक्रम काफी व्यापक थे जिसमें मुख्य बातें निम्न है:-
- नमक कानून का उल्लंघन।
- अन्य ब्रिटिश कानून का उल्लंघन।
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।
- कर नहीं देना।
- सरकारी नौकरियों से त्यागपत्र।
आंदोलन का सामाजिक आधार/ वर्गीय भागीदारी
असहयोग की भांति सविनय अवज्ञा आंदोलन का भी सामाजिक आधार काफी विस्तृत था। समाज के सभी वर्गों के लोगों ने इसमें व्यापक भागीदारी निभाई जैसे:-
महिलाएं – महिलाओं ने गांधी जी के आग्रह पर इस आंदोलन में काफी सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने विदेशी कपड़ों की दुकानों, शराब तथा अफीम के ठेकों पर धरने दिए। यह आंदोलन भारतीय महिलाओं के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ क्योंकि, इस आंदोलन में बड़े पैमाने पर महिलाओं ने भाग लिया तथा अपनी राजनीतिक अधिकारों को पहचानने की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की।
व्यापारी और छोटे व्यवसायी – इस वर्ग के लोगों ने भी इस आंदोलन में उत्साह पूर्वक भाग लिया। विभिन्न व्यावसायिक संगठनों ने जगह – जगह धरना प्रदर्शन किया विशेषकर तमिलनाडु एवं पंजाब में इनकी भूमिका काफी प्रशंसनीय रही।
मुसलमान – हालांकि मुसलमानों की भूमिका इस आंदोलन में इसमें ज्यादा नहीं रही। परंतु फिर भी उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत में मुसलमानों ने आंदोलन में भरपूर सहयोग दिया। यहां खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व में मुसलमानों ने बढ़-चढ़कर अंग्रेजों का विरोध किया बिहार, बंगाल एवं दिल्ली के बुनकरों ने भी आंदोलन में प्रमुखता से भाग लिया। ढाका के मुसलमान नेता, दुकानदारों, निम्न वर्ग के लोगों तथा उच्च वर्ग की महिलाओं ने आंदोलन को अपना भरपूर समर्थन प्रदान किया।
छात्र – छात्रों ने भी शराब की दुकानों तथा विदेशी कपड़ों की दुकानों के समक्ष प्रदर्शन किया तथा धरने दिए और अपनी एक सक्रिय भागीदारी दिखाई।
जनजातियां – कर्नाटक, महाराष्ट्र एवं मध्य प्रांत में जनजातियों एवं दलित वर्ग के लोगों ने भी आंदोलन में महत्वपूर्ण सहयोग दिया।
किसान – यह बिहार, उत्तर प्रदेश एवं गुजरात में मुख्य रूप से सक्रिय थें।
मजदूर – कोलकाता, मुंबई, मद्रास एवं सोलापुर में मजदूरों ने आंदोलन में अपना समर्थन दिया।
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सविनय अवज्ञा आंदोलन क्षेत्रीय प्रसार/ फैलाव
प्रसार/ फैलाव की दृष्टि से यह अखिल भारतीय आंदोलन था। इस आंदोलन के दौरान भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक स्थानीय नेताओं ने भी काफी सक्रिय प्रदर्शन किए जिसमें कुछ महत्वपूर्ण निम्न हैं:-
1. तमिलनाडु – यहाँ त्रिचनापल्ली से वेदारण्यम तक सी. राजगोपालाचारी ने अपने समर्थकों के साथ यात्रा निकाला और नमक कानून को समाप्त किया।
2. केरल (मालाबार) – यहाँ के. केलप्पन ने नमक कानून तोड़ा (यह स्थानीय नेता थे जिन्होंने निम्न जातियों के मंदिरों में प्रवेश के लिए वायकोम सत्याग्रह चलाया था)।
3. आंध्र प्रदेश – यहाँ टोटा नरसय्या तथा दुग्गीराला गोपालकृष्णय्या के नेतृत्व में नमक कानून तोड़ा गया।
4. उड़ीसा – गोपबंधु चौधरी।
5. कर्नाटक – यहाँ सैनिकट्टा में आम लोगों द्वारा नमक कानून तोड़ा गया।
6. असम – यहाँ श्रीमती चंद्रप्रभा के नेतृत्व में वन कानून तोड़ने का कार्य किया गया।
7. मणिपुर और नागालैंड – यहाँ जदो नागा तथा रानी गाइदिनल्यू के नेतृत्व में जनजातियों ने सरकार का विरोध किया।
8. बंगाल- यहां जे.एम सेन गुप्ता तथा सुभाष चंद्र बोस आंदोलन के दौरान काफी सक्रिय थे।
9. संयुक्त प्रांत ( उत्तर प्रदेश) – यहां कर नहीं देने का आंदोलन चलाया गया।
10. बिहार – यहाँ चौकीदारी कर नहीं देने का आंदोलन चलाया गया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की कुछ चर्चित घटनाएं
पेशावर घटना – यहाँ आंदोलन के दौरान खान अब्दुल गफ्फार खान ( सीमांत गांधी) के संगठन खुदाई खिदमतगार( लाल कुर्ती वाले) के बैनर तले एक बड़ा अहिंसक मार्च निकाला गया। इसमें 92% सदस्य युवा मुस्लिम थे सरकार ने इसे कुचलने के लिए चंद्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में गढ़वाल रेजीमेंट को उतारा। इस रेजिमेंट ने निहत्थे स्वयं सेवकों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया इसके लिए बाद में सैनिकों को काफी कड़ी सजा दी गई तथा उनका कोर्ट मार्शल भी किया गया।
धरासणा (गुजरात का तटीय स्थल) – धरासणा में सरोजिनी नायडू, अली मान साहब तथा मणिलाल गांधी के नेतृत्व में नमक कानून तोड़ने का आंदोलन चलाया गया। सरकार ने स्वयं सेवकों को कुचलने के लिए काफी दमन का सहारा लिया फिर भी स्वयंसेवकों ने अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा।
सरकार के जुर्म की रिपोर्टिंग एक अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर ने की है। वह लिखते हैं कि लोहा लगी लाठी से पुलिस वाले निहत्थे कार्यकर्ताओं पर जुल्म कर रहे हैं जत्था का जत्था मार खा रहा है लेकिन कोई भी अपना हाथ नहीं उठाता और न ही उनका मनोबल काम हो रहा है।
सोलापुर मजदूरों का संघर्ष (महाराष्ट्र) – सोलापुर एवं अहमदनगर के मजदूरों ने गांधीजी के गिरफ्तारी के बाद तीव्र विरोध किया। मजदूरों एवं पुलिस में खूनी संघर्ष हुआ, फायरिंग में कई मजदूर मारे गए, सरकार को बाद में ‘’मार्शल लॉ’’ लगा दिया फिर भी यहां मजदूरों का मनोबल कम नहीं हुआ।
सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रभाव
- इस आंदोलन ने भारतीयों के अंदर राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न की जिससे ब्रिटिश सरकार भी घबरा गई।
- विदेशी कपड़ों तथा अन्य वस्तुओं के आयात में कमी आई।
- सरकार को शराब उत्पाद शुल्क तथा भू राजस्व के रूप में प्राप्त होने वाली आय में भी अत्यधिक कमी आई।
- व्यवस्थापिका सभा के चुनाव का व्यापक ढंग से बहिष्कार किया गया।
गांधीजी की 11 सूत्रीय मांगेंगांधीजी ने ‘यंग इंडिया’ में एक लेख प्रकाशित कर अंग्रेजों के समक्ष,11 सूत्रीय मांगें रखी थी। जिसे स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए उन्होंने अंग्रेजों को 31 जनवरी 1930 तक का समय दिया था। जो निम्न हैं: – 1 सिविल सेवाओं तथा सेना में के व्यय में 50% तक की कमी की जाए । 2. सीआईडी विभाग/गुप्तचर विभाग पर सार्वजनिक नियंत्रण हो या उसे खत्म कर दिया जाए । 3. नशीली वस्तुओं के विक्रय पर पूर्ण रूप से रोक लगाई जाए । 4.रक्षात्मक शुल्क लगाए जाएं तथा विदेशी कपड़ों का आयात पर रोक लगाई जाए। 5. रुपए की विनिमय दर घटाकर एक शिलिंग चार पेन्स की जाए। 6. डाक आरक्षण विधेयक पास किया जाए । 7. सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया जाए । 8. शस्त्र कानून में परिवर्तन किया जाए तथा भारतीयों को आत्मरक्षा हेतु हथियार रखने का लाइसेंस दिया जाए । 9. तटीय यातायात सुरक्षा विधेयक पास किया जाए। 10. जमीन के लगान की दर में 50% की कमी की जाए। 11. नमक कर समाप्त किया जाए एवं नमक पर सरकारी एकाधिकार भी खत्म कर दिया जाए। |
निष्कर्ष
अतः यह कहा जा सकता है की सविनय अवज्ञा आंदोलन एक काफी व्यापक जन आन्दोलन था जिसमें जिसने विभिन्न वर्गों की भागीदारी ने पूरे देश को जोड़ने का कार्य किया। हालांकि इस लेख को हम दो भागों में प्रकाशित कर रहे हैं, अतः पहला भाग यहीं समाप्त होता है तथा दूसरे भाग में हम इस आंदोलन के दौरान होने वाले विभिन्न समझौतों तथा सम्मेलनों की चर्चा करेंगे।