1857 की क्रांति में वीर कुंवर सिंह की भूमिका का वर्णन करें | BPSC Mains

इस लेख में हम ‘वीर कुंवर सिंह’ और 1857 के विद्रोह में उनकी भूमिका को विस्तार पूर्वक बताने जा रहे हैं। ताकि बीपीएससी मेंस (BPSC MAINS) परीक्षा में इन टॉपिक से जुड़े प्रश्नों को सरलता से हल किया जा सके। बीपीएससी मेंस परीक्षा में इससे पहले भी इस टॉपिक से जुड़े प्रश्न पूछे जा चुके हैं। 

वीर कुंवर सिंह

⇒’वीर कुंवर सिंह’ भारतीय इतिहास के पन्नों में दर्ज वह स्वर्णिम नाम है जिसकी चमक युगों-युगों तक बरकरार रहेगी। इन्हें 1857 की क्रांति का महानायक भी कहा जाता है। इनका जन्म 23 अप्रैल 1777 ई. में  बिहार के शाहाबाद जिले के जगदीशपुर गांव (वर्त्तमान में यह स्थान बिहार के भोजपुर जिले में है।) में हुआ था। 1826 ई. में इन्होंने जगदीशपुर की जमींदारी संभाली। 

1857 की क्रांति के समय ‘वीर कुंवर सिंह’ की उम्र 80 वर्ष थी। इसलिए बिहार के लोकगीतों और लोक कथाओं में इनका नाम एक वृद्ध युवा क्रांतिकारी के रूप में दर्ज है। जो वृद्ध होते हुए भी 1857 के युद्ध में किसी वीर युवा से कम नहीं लड़े थें।

कुंवर सिंह गोरिल्ला और छापामार युद्ध में काफी निपुण थे जिसके माध्यम से उन्होंने अंग्रेज़ी सरकार के नाक में दम कर दिया था।

वीर कुंवर सिंह का संक्षिप्त परिचय:-

नाम  बाबू कुंवर सिंह 
जन्म तिथि  23 अप्रैल 1777
जन्म स्थान  शाहाबाद जिले के जगदीशपुर गांव में 
मृत्यु  26 अप्रैल 1858 
पिता का नाम  बाबू साहबजादा सिंह 
माता का नाम  महारानी पंच रतन देवी
1857 के युद्ध में नेतृत्व  जगदीशपुर (आरा), (राज्य – बिहार)

 

1857 का विद्रोह 

1857 का विद्रोह की शुरुआत मार्च में मंगल पांडेय के द्वारा अपने अंग्रेज़ अधिकारिओं की हत्या करने के साथ शुरू हुई थी। यह एक काफी व्यापक विद्रोह था जो कम समय में ही भारत की अधिकांश भागों में फैल गया था। इस विद्रोह में सैनिकों के साथ-साथ किसान, शिल्पी, देशी रजवाड़े व आम जनता ने भी शामिल थें। 

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बिहार में 1857 के विद्रोह का विस्तार 

बिहार में 12 जून 1857 को देवघर के रोहिणी से सैनिक विद्रोह के रूप में हुआ जिसका दमन कर दिया गया था।  

पटना में 3 जुलाई 1857 को विद्रोह फिर से उठ खड़ा हुआ जिसका नेतृत्व ‘पीर अली’ ने किया, वह एक पुस्तक विक्रेता थे। उस समय बिहार के तत्कालीन कमिश्नर ‘विलियम टेलर’ ने विद्रोह का दमन कर दिया और पीर अली को फांसी की सजा सुना दी। पीर अली को फांसी दिए जाने के कारण लोगों में काफी क्रोध था, जिसके परिणाम स्वरूप बिहार के अनेक क्षेत्रों में क्रांति की शुरुआत हो गई।

वीर कुंवर सिंह
वीर कुंवर सिंह

1857 की क्रांति में वीर कुंवर सिंह की भूमिका 

यदि हम बिहार में 1857 की क्रांति की बात करें तो इसकी शुरुआत मुख्यतः जगदीशपुर से होती है, जो शाहाबाद जिले का एक गांव है। और यहीं से संबंधित थे वीर कुंवर सिंह जिन्होंने 1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वीर कुंवर सिंह ने जैसे ही 1857 की क्रांति का नेतृत्व अपने हाथों में लिया, तो सबसे पहले उन्होंने 27 जुलाई को आरा पर अधिकार कर लिया। और एक स्वतंत्र सरकार की घोषणा करते हुए स्वयं को आरा का शासक घोषित कर दिया।       

विद्रोह में वीर कुंवर सिंह के युद्ध कौशल और अनुशासन को देख कर अंग्रेजी सरकार काफी विचलित हो उठी। और सख्त कदम उठाते हुए अंग्रेजी सरकार ने दानापुर से 500 और यूरोपियन और हिंदुस्तानी फौज के साथ कैप्टन डनवर को आरा भेजा। जहां कुंवर सिंह और डनवर के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसमें डनवर तथा कई सैनिक मारे गए, इस प्रकार आरा पुनः स्वतंत्र ही रहा। इसके पश्चात विंसेट आयर ने आरा पर हमला कर दिया लेकिन कुंवर सिंह वहां से बच निकले।

आरा से निकलकर वीर कुंवर सिंह ‘कल्पी’ पहुंचे जहां वह तात्या टोपे से मिले और उनके साथ कानपुर के संग्राम में शामिल हुए। यहां भी उनकी विजय होती है, उन्होंने तात्या टोपे तथा नाना साहेब के साथ मिलकर अनेकों स्थानों पर सैनिक तथा क्रांति के नेतृत्वकर्ताओं की हौसला अफजाई की। 

कानपूर विजय के बाद, लखनऊ पहुंच कर वह बेगम हजरत महल से मिलें। जहाँ बेगम हजरत महल ने आजमगढ़ की जिम्मेदारी कुंवर सिंह को सौंपी। अतः  आजमगढ़ में उत्तरौलिया के मैदान में कर्नल मिलमैन के साथ संघर्ष करके उसे हरा दिया। जिसके बाद आजमगढ़ पर कुंवर सिंह का कब्जा हो गया।

आजमगढ़ फतह के बाद वीर कुंवर सिंह जगदीशपुर की तरफ बढ़ते हैं, परंतु विंसेट आयर ने डगलस के नेतृत्व में एक सेना कुंवर सिंह के पीछे लगा दी थी।17 अप्रैल 1858 को गंगा नदी के किनारे डगलस की सेना ने वीर कुंवर सिंह पर आक्रमण कर दिया और यहाँ मुकाबले में फिर से कुंवर सिंह को विजय प्राप्त होती है। परंतु वह काफी बुरी तरह घायल हो जाते हैं। इनके हाथ में गोली लग जाती है, जिसे काटकर वह गंगा नदी को समर्पित कर देते हैं और फिर आगे 22 अप्रैल को जगदीशपुर पहुंचते हैं।

यहां विंसेट आयर को जब यह सूचना मिलती है कि वीर कुंवर सिंह जगदीशपुर पहुंच चुके हैं। तो वह लीग्रांड के नेतृत्व में 22 अप्रैल 1858 को ही एक सेना की टुकड़ी जगदीशपुर भेजी जाती है और लीग्रांड के सेना से कुंवर सिंह का मुकाबला होता है। इसमें वीर कुंवर सिंह जो पहले से ही घायल थें और ज्यादा घायल हो जाते हैं। तथा सही उपचार न मिल पाने के कारण उनके पूरे शरीर में जहर फैल जाता है और 26 अप्रैल 1858 को उनकी मृत्यु हो जाती है। 

मृत्यु के बाद नेतृत्व अमर सिंह ने अपने हाथ में ले लिया तथा हरी किशन सिंह और अली करीम ने मिलकर बिहार के नेतृत्व को संभाला लेकिन यह नेतृत्व करने में उतने निपुण थे और जल्द ही अंग्रेज इस विरोध को पूरे बिहार में दबाने (समाप्त करने) में सफल रहे। 


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अन्य कथन 

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. राम शरण जी ने कुंवर सिंह को ‘राष्ट्रीय एकता का प्रतीक’ माना है। उनके अनुसार इस क्रांति के दौरान वीर कुंवर सिंह को दलित और अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लोगों का भरपूर समर्थन मिला था।

लेफ्टिनेंट जनरल एस.के.सिंह की पुस्तक “वीर कुंवर सिंह-दी ग्रेट वॉरियर ऑफ 1857″ में इस बात का विस्तार से उल्लेख किया गया है। कि ‘वीर कुंवर सिंह’ जगदीशपुर रियासत के ऐसे रियासतदार थे जिनकी आर्थिक ताकत कमजोर थी। लेकिन सामाजिक ताकत इतनी गहरी, मजबूत और व्यापक थी कि दानापुर विद्रोह के बाद इंग्लैंड में कंपनी सरकार की नींव हिल गयी थी।

निष्कर्ष 

यदि हम 1857 के क्रांति में वीर कुंवर सिंह की भूमिका की बात करे तो वो काफी व्यापक और महत्वपूर्ण थी। जिसने अपने युद्ध कौशल के बल पर अंग्रजी सेना की नीव हिला कर रख दी जिसका असर इंग्लैंड तक में देखने को मिला। ब्रिटिश इतिहासकार ‘होम्स’ ने भी कहा है कि – यह गनीमत थी कि इस युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र 80 वर्ष थी। यदि वो जवान होते रो शायद अंग्रजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता।     

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