धर्म और विज्ञान पर निबंध – धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है। 2023

इस निबंध में हम धर्म और विज्ञान कैसे एक दूसरे के पूरक हैं ये बताने जा रहे हैं। हाल ही में 68वीं बीपीएससी मेंस (BPSC MAINS) परीक्षा निबंध को एक नए पेपर के रूप में जोड़ा गया, जो कि उम्मीदवारों के लिए काफी नया था। जैसे कि एक निबंध इस प्रकार था, कि – “धर्म के बिना विज्ञान नांगर छै, विज्ञान के बिना धर्म आन्हर छै।” अतः हमने इस निबंध को यहाँ सरल भाषा में आपको समझाने कि कोशिश की है। 

धर्म और विज्ञान

जहाँ धर्म के बिना विज्ञान लगा रहे, वहाँ अंधा धर्म है

और जहाँ विज्ञान के बिना धर्म रहे, वहाँ अंधा विज्ञान है। 

                                                    -गाँधी जी 

धर्म और विज्ञान में संबंध 

 ‘’धर्म और विज्ञान का ठीक वही संबंध है जो आत्मा और हृदय का’’

धर्म से आशय करुणा, भाव एवं आस्था जैसे आचरण से है वहीं विज्ञान इन सब को प्रमाणित करता है। बहरहाल करुणा व भाव से युक्त व्यक्ति एक सभ्य समाज का निर्माण करता है। जहाँ सामाजिक न्याय, दूसरे के प्रति प्रेम की भावना व असमानताओं की कमी होती है। साथ ही धर्म के साथ विज्ञान की सामंजस्यता इन सबों की पूर्ति हेतु आवश्यक पथ प्रशस्त करता है। 

धर्म और विज्ञान में ठीक वही संबंध है जो कवक और शैवाल में, दोनों सहजीविता के सिद्धांत पर कार्य करते हैं। जिसमें दोनों को एक दूसरे से फायदे मिलता हैं अर्थात दोनों एक दूसरे पर निर्भर हैं। 

जहां एक ओर धर्म व्यक्ति और समाज के भौतिक संवाद मानवीय मूल्यों तथा नैतिकता को प्रदर्शित करता है। वहीं विज्ञान धर्म व समाज में व्याप्त कुरीतियों को इंगित करता हुआ प्रतीत होता है।

धर्म और विज्ञान को खंडित करने वाले तत्व

विज्ञान व धर्म को खंडित करने वाला सबसे अहम तत्व अशिक्षा है। यह अशिक्षा ही है जिसके कारण धर्म विज्ञान पर हावी हो जाता है। जिससे समाज में कई तरह की कुरीतियां, अंधविश्वास तथा अज्ञानता  का सृजन होता है जो कहीं ना कहीं समाज को वर्गों में तथा देश को सांप्रदायिकता के आधार पर तोड़ने या बांटने का कार्य करता है। 

इन सबका सबसे बड़ा भुक्तभोगी तो हमारा देश ही है। जैसे – आजादी के उपरांत हुए बंटवारे तथा सांप्रदायिक दंगें, जिसकी विभीषिका आज तक व्याप्त है। इन सब की जड़े भी तो अशिक्षा ही थी जिसने धर्म को आडंबर से भर आम लोगों को कट्टरता की राह पर लाकर खड़ा कर दिया।    

धर्म और विज्ञान का वर्तमान परिपेक्ष 

वर्तमान परिपेक्ष में बात की जाए, तो यह कहना तनिक भी गलत नहीं होगा कि आज विज्ञान ने धर्म पर वर्चस्व पा लिया है जिसके नतीजे अच्छे नहीं हैं। जिसके उदाहरण स्वरुप हम आज रूस-यूक्रेन युद्ध को देख सकते हैं। इस रूस-यूक्रेन संकट पर हमारे प्रधानमंत्री कई बार यह कह चुके हैं, कि “युद्ध किसी चीज का विकल्प नहीं है यह व्यक्ति विशेष के लिए नहीं बल्कि पूरी मानव के लिए खतरा है”। जिसे शांति व संवाद से हल किया जा सकता है।

यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि शांति व संवाद धर्म का मूल भाव है। महात्मा गाँधी ने शांति व स्थिरता के सिद्धांत पर बल दिया, जो धर्म का विज्ञान के साथ मिश्रण के उपरांत पैदा हुए सिद्धांतों की झलक देता हुआ प्रतीत होता है। 

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धर्म और विज्ञान का महिलाओं पर प्रभाव 

 इतिहास गवाह है कि जब-जब विज्ञान व धर्म ने एक दूसरे के ऊपर वर्चस्व हासिल किया है तब-तब अप्रिय घटनाएं घटित हुई हैं। 

प्राचीन काल में लोपामुद्रा, अपाला, सिकता जैसी विदुषी, पुरुष विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ करती नजर आती थीं। तब विज्ञान और धर्म का आपसी सामंजस्य बना हुआ था। परिवार पितृसत्तात्मक होने के बावजूद समाज में महिलाओं की स्थिति अच्छी थी, वह यज्ञ आदि में भाग ले सकती थीं, यज्ञोपवीत धारण कर सकती थीं। 

परंतु जैसे ही विज्ञान पर धर्म का प्रभाव बढ़ा महिलाएं शिक्षा से वंचित हो गई, उनकी सामाजिक स्थिति न्यूनतम स्तर पर आ गई, धर्मों को आडंबर ने घेर लिया। यू कहें तो विज्ञान पूरी तरह से धर्म की आडंबर में ‘अमावस्या के समय चांद’ की भांति छिप गया। 

धर्म और विज्ञान का समाज पर प्रभाव 

यदि हम धर्म और विज्ञान के सामाजिक प्रभाव की बात करें, तो वर्तमान समय में शिक्षित लोगों संख्या पहले से काफी बढ़ी है। और यहि कारण है कि विज्ञान ने भी काफी तरक्की कर ली है। आज लोग नए-नए तकनीकों से जुड़ रहे हैं, विज्ञान के बढ़ते प्रभाव ने इंटरनेट, सोशल मीडिया तथा अन्य वेबसइटों के माध्यम से पूरी दुनिया को आपस में जोड़ दिया है। एक ओर जहाँ इस विकास ने तरक्की के कई रास्ते खोल दिए हैं, वहीं इससे लोगों के पारिवारिक मूल्यों में गिरावट भी आई है।

जैसे – सोशल मीडिया पर या ऑनलाइन जायदा वक़्त बिताने के कारन लोग एक घर में होते हुए भी एक दूसरे से बात नहीं करतें, ऑनलाइन गेम्स के कारण बच्चे बाहर जा कर खेलना पसंद नहीं करतें। जिस वजह से वो बचपन में ही कई बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं और शारीरिक विकास में भी कमी आती है।   

यहिं हम बात करें धर्म की तो शिक्षित लोगों में अपने धर्म के प्रति काफी जागरूकता आई है। जिससे एक जागरूक समाज का निर्माण हो रहा है, लोग अनचाहे आडम्बरों में नहीं फंस रहे हैं जैसे – धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वास आदि में कमी आई है। 

धर्म का सही ज्ञान लोगों को विवेकपूर्ण बनाने में मदद कर रहा है। तथा लोग धर्म और विज्ञान के सामंजस्य स्थापित कर एक बेहतर समाज के निर्माण की ओर अग्रसर हैं।           

धर्म और विज्ञान का इतिहास पर प्रभाव 

भारत में विज्ञान कि स्थिति तब और खराब हुई जब मध्यकाल में मुस्लिम आक्रमणकर्ताओं ने भारत में अपना शासन स्थापित किया। उस समय विज्ञान ने तो अपना औचित्य ही खो दिया, अब बस बचा था तो धर्म का बोलबाला उसमें भी कट्टरता और कुरीतियाँ निहित थीं।  

परंतु जब अंग्रेज़ों ने भारत को अपना उपनिवेश बनाया तब कहीं जाकर विज्ञान का सूरज फिर क्षितिज से बाहर निकला। एक ओर जहाँ पश्चिमी दुनिया में पुनर्जागरण, औद्योगीकरण जैसी प्रक्रियाएं संचालित हो रही थी, वही मांटेस्क्यू, वाल्टेयर, रूसो जैसे विद्वान अपनी बुद्धिमता से आम जन को प्रेरित कर रहे थें। तथा राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर जैसे प्रबुद्ध भारतीय सती प्रथा, विधवा विवाह आदि जैसी कुरीतियों के उन्मूलन के लिए संघर्षरत थें। 

धर्म और विज्ञान
धर्म और विज्ञान

धर्म और विज्ञान का अन्य प्रभाव 

 “जहाँ विज्ञान की सीमा खत्म, वहां से अध्यात्म की शुरुआत, अध्यात्म से ही धर्म का जन्म हुआ है।”

                                                                                        -एस. सोमनाथ (इसरो प्रमुख)

♦भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद के प्रमुख के कथन विज्ञान व धर्म की महत्ता के साथ-साथ उनके पूरकता पर भी बल देती प्रतीत होती हैं। आज समाज के हर एक वर्गों में नैतिकता संवेदना आदि की कमी देखने को मिलती हैं, जो कहीं ना कहीं धर्म को कमजोर कर रहा है। एक नैतिकवान व्यक्ति न सिर्फ स्वस्थ समाज का निर्माण करता है बल्कि मानव को भी मजबूत करता है। 

♦मानव ने आज विज्ञान के दम पर इतनी बड़ी धरती को मुट्ठी भर जगह में तब्दील कर दिया है। आत्मरक्षा की आड़ में हथियारों की होड़ लग गई है, साथ ही वैश्विक वर्चस्व को लेकर भाँति-भाँति प्रकार के पैतरें अपनाए जा रहे हैं। किन्तु क्या सच में मानव ने अपने विज्ञान रूपी हथियार से सब कुछ हासिल कर लिया है?

♦कहने को तो हमने सब कुछ पा लिया परंतु वास्तविकता इससे परे है। हाल ही के दिनों में ब्रिटेन में रोड़ों और ट्रैफिक लाइटों का भीषण गर्मी की वजह से पिघलना, जाड़े में बरसात की घटना तथा चक्रवातों का अनियंत्रित होकर आना, मानव सभ्यता व उसकी विज्ञानी ज्ञान पर प्रश्नचिन्ह लगता हुआ प्रतीत होता है। 

♦जहाँ हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे को पूजने की बात कही गई है, वहीं विज्ञान इसे ऑक्सीजन का एक अच्छा वाहक एवं चमत्कार युक्त बूटी कहता है। क्या यह धर्म एवं विज्ञान की पूरकता को सिद्ध नहीं करता ?

♦विज्ञान के तार कहीं ना कहीं धर्म के गर्भगृह में समाहित होते हैं। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि वर्तमान समय में विज्ञान का वर्चस्व धर्म पर हावी है। परंतु कोविड काल में लोगों ने जो भयावह व पीड़ा की आंधी का सामना किया, उसने लोगों को धार्मिक विचारों के प्रति सन्मुख किया है। 

♦विज्ञान जो आज नए-नए अविष्कार व शोध के माध्यम से बताने का कार्य कर रहा है। वह तो आदिकाल से ही हमारे भारतीयों ग्रंथों में समाहित थें। बस कमी थी उसे पढ़कर डिकोड करने वालों की। विडंबना यह है कि आज विज्ञान अंतरिक्ष तक जा पहुंचा है तथा सूर्य को समझने का प्रयास कर रहा है। परंतु आदिकाल के कई ऐसे भारतीय लिपि हैं जिन्हें आज तक पढ़ा नहीं जा सका है।  

♦वस्तुतः जब-जब विज्ञान व धर्म ने अपनी सामंजस्य बनाकर कार्य किया समाज के व्यक्ति की प्रगति हुई। इसके विपरीत जब विज्ञान का पलड़ा भारी हुआ तब विश्वयुद्ध जैसी घटनाएं घटित हुई। 6 अगस्त 1945 को अमेरिका द्वारा हिरोशिमा (जापान) पर गिराया गया परमाणु हमला एक सैनिक घटना नहीं थी, बल्कि यह मानवता पर अभिशाप की भांति है। जिससे समाज के तानेबाने को न केवल तार-तार कर दिया बल्कि मानवता, नैतिकता, आपसी प्रेम की भावना को भी कलंकित कर दिया। 

 निष्कर्ष

 निष्कर्षतः कहें तो विज्ञान और धर्म मानव के दोनों हाथों के अनुरूप हैं। जिसमें एक के निष्क्रिय हो जाने पर दूसरे का औचित्य कम हो जाता है साथ ही उत्पादकता भी घट जाती है। यह आवश्यक है कि मनुष्य विज्ञान व धर्म की पूरकता को बनाए रखें ताकि नैतिकवान व बंधुत्व युक्त समाज का निर्माण हो सके। साथ ही गाँधी जी के सपनों का कल्याणकारी राज्य का मार्ग प्रशस्त हो सके। हालांकि वैज्ञानिक शोध व खोजें समय की मांग है परंतु धर्म को उसमें समाहित करके रखना होगा। तभी मानव और प्रकृति में आपसी सामंजस्य बना रहेगा। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब “माँ रूपी पृथ्वी हिंसाओं व हथियारों रूपी ज्वालामुखी की ढेर पर बैठी प्रतीत होगी।”

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