स्थायी बंदोबस्त क्या है? (Sthai bandobast)
भारत में ब्रिटिश काल के दौरान भू राजस्व व्यवस्था के अंतर्गत अनेक परिवर्तन लाए गए, जिसमें स्थायी बंदोबस्त (Sthai bandobast) काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। जिसे 22 मार्च 1793 ई. में लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा शुरू किया गया था। जिसका फैलाव भारत के 19% क्षेत्र में था जिसमें बंगाल, बिहार, उड़ीसा तथा मद्रास के उत्तरी भाग शामिल हैं।
इस व्यवस्था के अंतर्गत जमींदार को भूमि का स्वामी बना दिया गया। जहाँ जब तक जमींदार, सरकार को एक निश्चित लगान देते रहते थे तब तक भूमि पर उनका अधिकार सुरक्षित रहता था, परन्तु लगान नहीं देने की स्थिति में उन्हें इस अधिकार से वंचित किया जाता था। यहाँ सरकार के साथ किसानों का कोई सम्बन्ध नहीं था।
यह व्यवस्था पूरी तरह से अंग्रेजों के हित में थी, जिसमें सरकार द्वारा लगान की रकम निश्चित तय कर देने से अंग्रेज़ अधिकारी भी प्रतिवर्ष लगान वसूलने के झंझट से मुक्त हो गए।
स्थायी बंदोबस्त की विशेषताएँ(Sthai bandobast ki visheshta)
समझौते का मालिकना हक:
- स्थायी बंदोबस्त (Sthai bandobast) वाले क्षेत्रों में जमींदारों को समस्त भूमि का मलिक माना गया, उनके अधिकारों को वंशानुगत एवं हस्तांतरणीय बनाया गया।
- सामुदायिक संपत्ति पर जमींदारों को अधिकार दिया गया।
- भू राजस्व की वसूली के लिए सरकार ने जमींदारों से समझौता किया।
शर्तों के साथ (सूर्यास्त कानून)
जमींदारों को लगान कि एक निश्चित राशि, निर्धारित तिथि पर सूर्यास्त के पहले कंपनी को चुका देनी पड़ती थी। क्यूंकि सूर्यास्त तक राशि न चुकाने पर उनकी जमीन नीलाम कर दी जाती थी और इसे ही सूर्यास्त कानून कहा जाता था।
करो का निर्धारण
स्थायी बंदोबस्त में करो के निर्धारण के लिए अनुभव एवं अनुमान का सहारा लिया गया। मनमाने तरीके से करों का निर्धारण हुआ और निर्धारण से पूर्व जमींदारों से सलाह नहीं ली गई।
करो कि दर
अलग-अलग जमींदारों से भिन्न-भिन्न शर्तें तय हुई, अलग-अलग करो का निर्धारण हुआ लेकिन जो भी तय हुआ उसका 10/11 भाग सरकार को देना था तथा उसकी शेष राशि 1/11 भाग जमींदारों के पास रह जाती थी।
संकट के समय
संकट के समय (अर्थात सूखा पड़ जाने या अनाज के उपज में कमी आने पर) भी भू राजस्व की वसूली की जाती थी, अर्थात राहत का कोई प्रावधान नहीं था।
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स्थायी बंदोबस्त के ले जाने का कारण (Sthai bandobast ke lai jane ke karan)
राजनीतिक-प्रशासनिक कारण:
- विस्तार के क्रम में अंग्रेजों को विभिन्न विद्रोह का सामना करना पड़ा। अतः अंग्रेजों को भारतीय समाज के प्रभावी वर्ग से सहयोग की आवश्यकता महसूस हुई, एक ऐसा वर्ग जो प्रभावित होने के साथ-साथ उसका हित भी अंग्रेजों से जुड़ा हुआ हो।
- प्रारंभिक दौर में कंपनी प्रशासनिक दायित्व से भी बचना चाहती थी क्योंकि कहीं न कहीं लगान वसूली एक खर्चीली प्रक्रिया थी।
आर्थिक कारण
- प्रशासनिक एवं विस्तार संबंधी खर्चों के लिए धन की आवश्यकता थी, इसके अतिरिक्त भारतीय उत्पादों को खरीदने के लिए भी धन चाहिए था।
- 18वीं सदी के उत्तरार्ध में कंपनी राजनीतिक रूप से निरंतर युद्ध में संलग्न थी और कंपनी को एक निश्चित आय के स्रोत की जरूरत थी।
स्थायी बंदोबस्त के परिणाम (Sthai bandobast ke parinam)
सकारात्मक
>जिन उद्देश्यों को ध्यान में रखकर इस बंदोबस्त को लागू किया गया था उसे प्राप्त करने में सरकार बहुत हद तक सफल रही, अर्थात कंपनी को एक निश्चित तिथि पर भू राजस्व की प्राप्त हो जाती थी।
>स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत जमींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार कर लिया गया जो बंगाल के जमींदारों के लिए एक वरदान सिद्ध हुआ। यहाँ जमींदारों इस बात को लेकर पूरी तरह से निश्चिंत थें कि जब तक वह कंपनी को एक निश्चित राशि चुकाते रहेंगे तब तक वह भूमि के स्वामी बने रहेंगे।
>इस भू राजस्व व्यवस्था के कारण अब कंपनी को प्रत्येक किसान से भूमि राजस्व वसूल करने के उत्तरदायित्व से सरकार को अब मुक्ति मिल गई थी, जिससे साम्राज्य तथा व्यापार के विस्तार में काफी मदद मिली।
>राजस्व की राशि इतनी अधिक निर्धारित की गई थी कि बहुत से जमींदार इसे निर्धारित समय पर कर चुका नहीं पाए जिसके परिणाम स्वरुप उन्हें भूमि के स्वामित्व से वंचित होना पड़ा।
नकारात्मक
>इस व्यवस्था के अंतर्गत जमींदारों की आय बढ़ने पर कंपनी की उसमें कोई भागीदारी नहीं होती थी। इससे कहीं न कहीं आगे चलकर कंपनी को आर्थिक नुकसान भी हुआ, क्यूंकि स्थायी बंदोबस्त के कारण कंपनी की आय तो स्थायी ही रही परन्तु उसके खर्च में बढ़ोतरी होती गई।
>इतिहासकार “होमलेस” ने इस व्यवस्था को “दुखद मुर्खता भरी भूल कहा था”। क्यूंकि यहाँ कंपनी का संपर्क केवल जमींदारों से होने के कारण आम किसानों की स्थिति के बारे में कंपनी को जानकारी नहीं रहती थी।
>स्थायी बंदोबस्त में जन्म,जमींदारों को जमीन का मालिक बना दिया गया और किसानों को उनका रैयत बना दिया गया तथा किसानों का उनके जमीन पर से सभी मालिकाना हक भी छीन लिया गया। जिसके कारण किसान पूर्ण रूप से जमींदारों की दया पर आश्रित हो गए।
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स्थायी बंदोबस्त का जमींदारों पर प्रभाव (Sthai bandobast ka jamindaron par prabhav)
सकारात्मक
अंततः यह बंदोबस्त जमींदारों के लिए अत्यंत लाभदायक रहा। जमींदार का जमीनों पर मालिकाना हक एवं सामुदायिक संपत्ति पर नियंत्रण से उनकी आय में वृद्धि हुई, किसी भी रूप में आय बढ़ाने पर सरकार को अतिरिक्त कर नहीं देना पड़ता था। अतः अतरिक्त लाभ किसान अपने पास रखते थें जिससे उनके आय में वृद्धि हुई।
नकारात्मक
भू राजस्व कीअत्यधिक दरें तथा राजस्व वसूली के कठोर तरीकों के कारण प्रारंभ के डेढ़ दशकों में लगभग 50% जमींदारों की जमींदारी नीलाम हो गई या छीन ली गई।