धर्म सुधार आंदोलन के कारण, महत्व और परिणाम

धर्म सुधार आंदोलन (Dharm Sudhar Andolan)

धर्म सुधार आंदोलन की शुरुआत 16 वीं सदी के प्रारंभ में यूरोप में हुआ, जिसके नेतृत्वकर्ता मार्टिन लूथर थें। पुनर्जागरण से उपजी चेतना के परिणामस्वरूप 16वीं से 17वीं शताब्दी के यूरोप में पोप एवं रोमन कैथोलिक चर्च के बुराइयों के खिलाफ सुधार के लिए जो आंदोलन चलाया गया, उसे ही धर्म सुधार आंदोलन कहा जाता है।

प्रारम्भ में यह आंदोलन मात्र एक धार्मिक आंदोलन था परंतु कुछ ही समय में इस आन्दोलन में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि पहलु भी शामिल हो गए।

धर्म सुधार आंदोलन का उद्देश्य

धर्म सुधार आंदोलन (Dharm Sudhar Andolan) का उद्देश्य धार्मिक तथा राजनीतिक दोनों ही था।

  • धार्मिक उद्देश्य -ईसाइयों के धार्मिक तथा नैतिक जीवन में सुधार करने के साथ-साथ ईसाई धर्म में पनप रहे पाखंड को समाप्त कर उसे पुनः शुद्ध रूप से स्थापित करना था।
  • राजनीतिक उद्देश्य – पोप के व्यापक धार्मिक एवं राजनीतिक प्रभुता को समाप्त करना था।अतः पोप तथा चर्च के विरोध में यूरोप में जो आंदोलन चलाया गया उसे ही धर्म सुधार आंदोलन कहते हैं।

इतिहासकार “फर्डिनेण्ड शेविल” के अनुसार
“यथार्थ में यह एक द्विउद्देशीय आन्दोलन था। एक ओर इसका उद्देश्य ईसाइयों के जीवन का मौलिक उत्थान करना था तथा दूसरी ओर पोप की सत्ता को कम करना था।”

धर्म सुधार आंदोलन के प्रमुख कारण

धार्मिक कारण
  • मध्य काल के अंतिम समय में रोमन कैथोलिक चर्च के अंदर आए बुराइओं के कारण असंतोष बढ़ रहा था।
  • पोप एवं अनेक पादरी जुआ, शराब एवं व्यभिचार आदि में लिप्त हो गए।
  • पोप धार्मिक क्षेत्र में सर्वोपरि था इसलिए वह स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि समझता था। उसे अधिकार था कि किसी को भी धर्म से बहिष्कृत कर सकता था तथा किसी भी राजा को उसके गद्दी से हटा सकता था।
  • कैथोलिक चर्च को पवित्रता एवं धार्मिक चिंतन का केंद्र माना जाता था। परन्तु पोप एवं पादरी की विलासिता और धन की अधिकता के कारण चर्च भ्रष्टाचार एवं दुराचार का केंद्र बन गया।
  • चर्च के विभिन्न पदों पर नियुक्ति अब योग्यता के आधार पर न होकर धन के आधार पर होने लगी।
  • चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण कोई भी व्यक्ति रिश्वत देकर कानूनी प्रतिबंधों से मुक्त हो सकता था।
आर्थिक कारण
  • 16वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में यूरोप में पूंजीवादी भावना का विकास हुआ।
  • नए-नए रास्तों के खोज के कारण दूसरे देशों के साथ व्यापार आसान हो गया।
  • कैथोलिक चर्च के पास समस्त यूरोप के भूमि का लगभग 20% हिस्से पर कब्जा था तथा चर्च इस भूमि पर किसानों से कर वसूल करता था।
  • धार्मिक संस्कारों के नाम पर व्यापारी तथा किसानों पर अनेक प्रकार के कर लगाए जाते थें। जिसके कारण व्यापारी तथा किसानों में आक्रोश उत्पन्न हुआ।
  • चर्च समुद्र यात्रा, संपत्ति संग्रहण आदि की निंदा करता था, जिससे स्वतंत्र व्यापार वाणिज्य के विकास पर चोट पहुंचती थी।
  • पोप के प्रति उत्तरदाई होने के कारण राजा भी व्यापारियों को सुरक्षा नहीं दे पाते थें।
  • चर्च में फैले भ्रष्टाचार के कारण पोप और पादरी चर्च की संपत्ति पर अपना व्यक्तिगत अधिकार समझते थें। अतः वह चर्च की धनराशि को चर्च पर खर्च न कर अपनी विलासिता तथा शानो-शौकत पर खर्च करते थें।
  • देश की आय का एक बड़ा हिस्सा रोम के चर्च के कोषागार में चला जाता था। अतः चर्च के भ्रष्टाचार का सीधा संबंध जनता के आर्थिक शोषण से था। फलतः इसके खिलाफ आवाज उठाई गयी।

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राजनीतिक कारण
  • मध्यकाल में चर्च राजनीतिक रूप से भी काफी शक्तिशाली हो गए थें, उनकी खुद की अपनी धार्मिक अदालतें थीं, जिसमें निर्दोष को भी सजा दे दी जाती थी।
  • राजनीति में हस्तक्षेप के कारण चर्च तथा राजाओं में तनाव उत्पन्न हुआ, इससे शासकों ने भी चर्च में सुधार के लिए कदम उठाए।
  • इस समय पोप की शक्ति इतनी बढ़ चुकी थी, कि वह किसी राजा को भी धर्म से बहिष्कृत कर सकता था तथा इस समय धर्म से अलग होना एक बहुत बड़ी सजा मानी जाती थी।
  • कहां जाता है कि यूरोप के प्रत्येक राज्य में चर्च का एक अपना अस्तित्व होता था। अर्थात सरल शब्दों में कहें तो चर्चा ही सर्वोपरि था।
  • इस समय सभी से धार्मिक कर वसूला जाता था, जिससे पोप और पादरी मुक्त रहते थें।
  • पोप और पादरी चर्च में पदों का बटवारा भी अपने सगे संबंधियों के साथ करने लगें।
विचारकों की भूमिका
  • नवीनतम युग में धर्म सुधार आंदोलन (Dharm Sudhar Andolan) को लाने में अनेक विचारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिसमें मार्टिन लूथर, काल्विन, इरास्मस, जॉन कालेट, थॉमस मूर आदि ने महत्वपूर्ण हैं। 
  • मार्टिन लूथर जर्मनी के विटेनबर्ग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थे, इन्होनें चर्च की बुराइयों की एक लंबी सूची (95 उपदेश) को विश्वविद्यालय के दीवार पर चिपका दिया। इस सूची में चर्च के खिलाफ गंभीर सवाल उठाए गए छात्रों एवं शिक्षकों ने इसका प्रचार किया धीरे-धीरे नागरिकों के बीच भी इसका प्रसार हुआ। देखते ही देखते इस घटना ने आंदोलन का रूप ले लिया।
  • फलतः धर्म सुधार के लिए एक व्यापक आंदोलन उठ खड़ा हुआ।
पुनर्जागरण का प्रभाव

धर्म सुधार आंदोलन (Dharm Sudhar Andolan) में पुनर्जागरण का प्रभाव भी रहा। जैसे:-

  • पुनर्जागरण के काल में मानवतावाद, व्यक्तिवाद, बुद्धिमान और तर्कशीलता में विकास के कारण लोगों में राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ।
  • इस कल के दौरान ग्रीक और रोमन साहित्य के अध्ययन पर बल दिया गया।
  • 1453 में क़ुस्तुंतुनिया के पतन के कारण जैसे ही तुर्कों ने क़ुस्तुंतुनिया पर अपना अधिकार जमाया, अनेकों यूनानी एवं बुद्धिजीवी वर्ग क़ुस्तुंतुनिया छोड़कर यूरोप (इटली) चले गए। जिससे नएनए रास्तों का खोज हुआ तथा इससे व्यापार एवं वाणिज्य में वृद्धि हुई। जैसे – कोलंबस ने अमेरिका तथा वास्कोडिगामा ने भारत की खोज की।
  • पुनर्जागरण के कारण चर्च एवं पोप के बारे में सही ज्ञान प्राप्त होने से धर्म के स्थान पर मानवतावाद को बल मिला।
तात्कालिक कारण
  • चर्च द्वारा खुलेआम “क्षमापत्रों” की बिक्री करना ही, धर्म सुधार आन्दोलन (Dharm Sudhar Andolan) का तात्कालिक कारण बना।
  • पोप द्वारा जनता को यह विश्वास दिलाया गया था कि, उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन में चाहे कितने भी भ्रष्टाचार क्यूँ न किया हो परंतु क्षमा पत्र प्राप्त करने के पश्चात उन्हें नरक की प्राप्ति नहीं होगी बल्कि उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी अर्थात कोई भी व्यक्ति इन क्षमतापत्रों के द्वाराअपने किए गए पापों से मुक्त हो सकता था।
  • इन क्षमतापत्रों का कोई मूल्य निश्चित नहीं किया गया था अतः खरीदने वाले की क्षमता पर यह निर्भर करता था कि किसके पास कितने पैसे हैं। जिसके कारण इसका काफी दुरूपयोग हुआ।
  • जब इन क्षमता पत्रों की बिक्री जर्मनी के ब्रिटेनवर्ग में खुलेआम होने लगी तब “मार्टिन लूथर” ने इस प्रथा का विरोध किया। उन्होंने 95 उपदेशों की एक सूची तैयार की जिसके माध्यम से उन्होंने चर्च के खिलाफ आवाज़ उठाया, जिससे जनता में जागरूकता आई और इसने आगे चलकर धर्म सुधार आन्दोलन (Dharm Sudhar Andolan) का रूप ले लिया।

धर्म सुधार आंदोलन का महत्व अथवा परिणाम

धर्म सुधार आंदोलन (Dharm Sudhar Andolan) के कारण यूरोप में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा धार्मिक परिवर्तन आए। यहीं से यूरोप में आधुनिकीकरण की शुरुआत भी हुई। धर्म सुधार आंदोलन के फलस्वरूप यूरोप में एक नया वर्ग प्रोटेस्टेंट धर्म का उदय हुआ।

  • ईसाई चर्च की एकता समाप्त हुई तथा प्रोटेस्टेंट धर्म की स्थापना हुई। इसके अंतर्गत अनेक संप्रदाय काल्विनवाद, लूथरवाद और एग्लिकन चर्च आदि स्थापित हुए।
  • यूरोप में धार्मिक कट्टरता तथा अत्याचारों में वृद्धि हुई। प्रत्येक संप्रदाय एक दूसरे के विरोधी थें तथा अपने विरोधियों को खत्म कर देना चाहते थें। राजाओं ने भी धार्मिक एकता के राजनीतिक एकता के लिए आवश्यक समझा।
  • धार्मिक असहिष्णुता के कारण राज्यों के मध्य युद्ध हुए जैसे पहले हॉलैंड का युद्ध और बाद में 30 वर्षीय युद्ध (1618ई.-1648ई.) धार्मिक कारणों से ही हुआ।
  • पोप पादरियों ने कला के विकास को काफी प्रोत्साहन दिया था परंतु प्रोटेस्टेंट देश में कला को कोई प्रोत्साहन प्राप्त नहीं हुआ। अतः यहाँ कल की अवनति होने लगी।
  • धर्म सुधार आंदोलन (Dharm Sudhar Andolan) से राजाओं की शक्ति में वृद्धि हुई क्योंकि प्रोटेस्टेंट राजा पोप की शक्ति को नहीं मानते थें। अतः कैथोलिक राजा भी निरंकुश हो गए क्योंकि पोप उनकी सहायता पर निर्भर करते थें।
  • इस आंदोलन से राष्ट्रीय भावना अधिक सुदृढ़ हुई। कैथोलिक राजाओं ने यद्यपि पोप का समर्थन किया परंतु उन्होंने राष्ट्रीय हित को अधिक महत्व दिया।
  • इस आंदोलन के कारण शिक्षा में व्यापक प्रसार हुआ क्योंकि कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट दोनों ही अपने धर्म का प्रसार करने के लिए शिक्षा को आवश्यक मानते थें। 

अतः इस प्रकार धर्म सुधार आंदोलन ने संपूर्ण यूरोप में एक नई चेतना को जन्म दिया। जिससे यूरोप में आधुनिकीकरण का प्रसार हुआ।

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