संथाल विद्रोह हमेशा से बीपीएससी मेंस (BPSC Mains) के लिए एक पसंदीदा टॉपिक रहा है अतः बीपीएससी (BPSC)कई बार संथाल विद्रोह से जुड़े प्रश्न पूछती है इस लेख में हमने संथाल विद्रोह के कारण एवं परिणामों की चर्चा की है जोकि बीपीएससी मेंस में पहले पूछा जा चूका है और आगे भी पूछे जाने की संभावना है।
Q. बिहार में संथाल विद्रोह (1855-56) के कारणों एवं परिणामों का मूल्यांकन कीजिए। (48वीं, 52वीं और 63वीं BPSC) [GS Paper-1]
संथाल विद्रोह (Santhal Vidroh)
भारत में विद्रोह एवं आंदोलनों का इतिहास ब्रिटिश शासन की स्थापना के साथ ही प्रारंभ हुआ था तथा संथाल विद्रोह भी उन्हीं विद्रोहों में से एक था। यह विद्रोह ब्रिटिश औपनिवेशिक व्यवस्था के विरुद्ध प्रथम व्यापक सशस्त्र विद्रोह था जो ब्रिटिश शासन काल में जमींदारों तथा साहूकारों द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों के ख़िलाफ़ किया गया था।
इतिहास में इस विद्रोह को हुल/ संथाल विद्रोह के नाम से जाना जाता है। इसे आदिवासियों के विद्रोह में सबसे आक्रामक विद्रोह भी माना जाता है, जिसे आदिवासियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध 30 जून 1855 को शुरू किया। संथाल विद्रोह के प्रमुख नेता सिद्धू, कान्हू, चाँद एवं भैरव थें। यहाँ सिद्धू ने खुद को देवदूत बताया ताकि संथाल समुदाय उसकी बातों पर विश्वास कर विद्रोह के लिए एकजुट हो सके।
संथाल विद्रोह के प्रमुख कारण
यदि हम संथाल विद्रोह के प्रमुख कारणों की चर्चा करें तो वह इस प्रकार है-
1. आर्थिक कारण-
- 1793 में लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा स्थायी बंदोबस्त लागू कर दिया गया तथा संथालों की जमीन छीन कर जमींदारों को मालिकाना हक़ दे दिया गया, कर की राशि भी सामान्य दर से 3 गुनी बढ़ गयी थी। संथाल जब कृषि कर नहीं चुका पाते थे तो साहूकार से ऋण लेते थे फिर और सही समय पर ऋण न जमा करने के कारण उनकी जमीन साहूकार द्वारा छीन ली जाती थी।
- नए वन कानून के द्वारा जनजातियों को वन जाने से प्रतिबंधित कर दिया गया जबकि उनका पूरा जीवन जंगल पर ही निर्भर था।
- बेरोजगारी का मुद्दा- भागलपुर-वर्धमान रेल मार्ग के निर्माण के साथ संथाल से जबरदस्ती बेगारी करवाया गया।
2. सामाजिक व धार्मिक कारण-
ब्रिटिश बहुमत ने विभिन्न कानून बनाकर संथाल के सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप किया जैसे पशु बलि पर रोक लगाया, संथालों के क्षेत्र में बाहरी लोग(दीकु) के आने से इनके समाज की परंपरागत संरचना नष्ट हो गई, 1813 का चार्टर एक्ट के तहत ईसाई प्रचारक के द्वारा प्रलोभन देकर इनका धर्म परिवर्तन कराया गया।
3. राजनीतिक व प्रशासनिक कारण-
संथालों का अपना राजनीतिक ढांचा भी था “पुरहा पंचायत” के द्वारा सारे क्षेत्रों पर उनके प्रतिनिधियों के द्वारा शासन किया जाता था। परंतु ब्रिटिश ने परंपरागत संस्था को समाप्त कर अंग्रेजी शासन लागू कर दिया। उस समय के समाचार पत्र ‘कोलकाता रिव्यू’ के अनुसार दरअसल स्थानीय जमींदार, महाजन तथा पुलिस की तिकड़ी ने संथालों पर बेवजह जुल्म की उनके जल, जंगल तथा जीवन पर कब्जा भी कर लिया।
4. तात्कालिक कारण-
संथाल विद्रोह का तात्कालिक कारण दरोगा हत्याकांड माना जाता है | जिसमें मामूली चोरी के मामले में दरोगा की सहायता से संथालों को गिरफ्तार कर लिया गया इसके प्रतिक्रिया स्वरूप संथालों ने दरोगा की हत्या कर दी और यही से शुरुआत हुई संथाल विद्रोह की।
संथाल विद्रोह के परिणाम स्वरूप अंग्रेजों ने विद्रोह का दमन करना शुरू कर दिया कोलकाता से “मेजर बारो” के नेतृत्व में सेना की टुकड़ी भेजी गई जिसका संथालों ने वीरता पूर्वक सामना किया परन्तु संथाल के परंपरागत हथियार (तीर, कमान भाला) अंग्रेज़ो के आधुनिक हथियारों के सामने टिक न सके और उनके नेता सिद्धू और कान्हू सहित लगभग 10,000 लोग मारे गए परिणामतः यह विद्रोह जायदा दिनों तक तो नहीं चला परन्तु ब्रिटिश सरकार की नींव हिलने में कामयाब रहा तथा कई परिणाम संथालों के हक़ में भी आए।
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संथाल विद्रोह का परिणाम
1. प्रशासनिक परिणाम
- भागलपुर व वीरभूमि के कुछ क्षेत्रों को काटकर संथाल परगना के नाम से जिला बनाया गया।
- संथाल परगना टेनेंसी या काश्तकारी एक्ट 1856 बनाया गया। इसके तहत संथाल जिले को नन – रेगुलेशन जिला घोषित किया गया जहां सामान्य कानून नहीं लागू होते थें।
- ग्राम प्रधान को मान्यता दी गई तथा ग्रामीण अधिकारियों को पुलिस अधिकार प्रदान किए गए।
- संथाल परगना के लिए भागलपुर में कमिश्नर के अधीन डिप्टी कमिश्नर का पृथक पद सृजित किया गया।
2. सामाजिक परिणाम-
- संथाल की पुरानी सामाजिक व्यवस्था “मांझी व्यवस्था” को पुनः बहाल किया गया।
- संथालों के आंतरिक जीवन में हस्तक्षेप पर रोक लगाने के साथ ही धर्म परिवर्तन पर भी रोक लगा दिया गया।
3. दीर्घकालिक परिणाम-
- 1855 – 56 के संथाल विद्रोह ने भविष्य के स्वतंत्रता (1857 के स्वतंत्रता आंदोलन)आंदोलन के लिए प्रेरणा व ऊर्जा का काम किया।
निष्कर्ष
संथाल विद्रोह भले ही दबा दिया गया हो लेकिन इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन को यह एहसास दिला दिया कि अब आदिवासी/जनजाति, अंग्रेज़ो का अत्याचार नहीं सहेंगे और शोषण के विरुद्ध मिल कर लड़ेंगे। संथालियों ने अपने परंपरागत हथियारों के बदौलत ही अंग्रेज़ों को कड़ी टक्कर दी जिससे 1857 के विद्रोह को भी बल मिला। वर्त्तमान में प्रतिवर्ष इस विद्रोह को 30 जून के दिन “हुल दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
FAQ
Q. संथाल विद्रोह कब हुआ?
Ans: संथाल विद्रोह की शुरुआत “30 जून 1855″ को हुई थी।
Q. संथाल विद्रोह के नेता कौन थे?
Ans: “सिद्धू, कान्हू, चाँद एवं भैरव” संथाल विद्रोह के प्रमुख नेता थें।
Q. 1855 में संथालों द्वारा किस ब्रिटिश कमांडर को हराया गया था?
Ans: 1855 में संथालों के द्वारा “मेजर बरोज़” को हराया गया था।
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