1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में बिहार की भूमिका का वर्णन करें।

“भारत छोड़ो आंदोलन” से जुड़े प्रश्न बीपीएससी मेंस (BPSC MAINS) परीक्षा में कई बार पूछा जा चूका है। जैसे – 40वीं, 41वीं, 48-52वीं, 53-55वीं, 60-62वीं तथा 64वीं बीपीएससी आदि। इस लेख में हम ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ क्या है? आंदोलन प्रारंभ होने का कारण और भारत छोड़ो आंदोलन में बिहार की भूमिका को विस्तार पूर्वक पढेंगे।  

भारत छोड़ो आंदोलन
भारत छोड़ो आंदोलन

भारत छोड़ो आंदोलन क्या है?

‘भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत  8 अगस्त 1942 में महात्मा गाँधी के द्वारा की गई थी। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अंतिम एवं व्यापक जन आंदोलन था, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की परिस्थितियां तथा क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद भारतीयों में निराशा के फलस्वरूप उत्तपन हुआ। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था।   

जुलाई 1942 में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में गांधीजी ने आंदोलन चलाने की अनुमति मांगी, लेकिन इस बार कई नेताओं ने गांधीजी का तीव्र विरोध किया। इस समय गांधीजी सामरिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों के कारण काफी दुखी थें तथा कांग्रेस को चेतावनी देते हुए उन्होंने कह डाला कि “देश के मुट्ठी भर बालू से कांग्रेस से बड़ी संगठन खड़ा कर दूंगा”। बाद में कांग्रेस ने उन्हें आंदोलन करने की इजाजत दे दी।

8 अगस्त 1942 को गांधीजी ग्वालिया वाला टैंक मैदान बंबई में सभा आयोजित किया। जिसमें लाखों की भीड़ के सामने सरकार की तीखी आलोचना करते हुए “करो या मरो” का नारा दिया। इसके साथ ही ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ पूरे देश में फैल गया।

भारत छोड़ो आंदोलन आंदोलन प्रारंभ होने का कारण

 राजनीतिक कारण

द्वितीय विश्व युद्ध की राजनीति में अनेक ऐसी घटनाएं हुई जिससे कांग्रेस का अंग्रजी सरकार से मोहभंग हुआ। जैसे भारतीयों से बिना पूछे या सलाह लिए भारत को विश्व युद्ध में शामिल कर देना, अगस्त प्रस्ताव और क्रिप्स मिशन की विफलता तथा कांग्रेस के नेताओं पर जन आंदोलन चलाने का दबाव पड़ा। जिसके कारण भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई। 

आर्थिक कारण 

द्वितीय विश्व युद्ध से उपजी आर्थिक समस्याएं जैसे – बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई आदि का बढ़ना। 

सामरिक कारण

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया में एक शक्ति के रूप में जापान का तेजी से उदय हुआ। जापानियों ने दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य ठिकानों से अंग्रेजों को खदेड़ दिया तथा अनेक भारतीय सिपाहियों को बंदी बना लिया। उन्होंने कोलकाता तक बम बरसाए इससे जनता एवं कांग्रेस नेतृत्व में सुरक्षा एवं चिंताएं उत्पन्न हो गई इसी पृष्ठभूमि ने आंदोलन को जन्म दिया। 

भारत छोड़ो आंदोलन के कार्यक्रम

कांग्रेस को आंदोलन से जुड़े कार्यक्रम तय करने का कोई विशेष अवसर नहीं मिला। मुंबई सभा के दौरान उन्होंने जो निर्देश दिए थे उसे ही आंदोलन का कार्यक्रम माना जाता है। जो निम्न हैं:- 

  • सरकारी कर्मचारी आंदोलन के दौरान अपनी नौकरी नहीं छोड़ेंगे लेकिन कांग्रेस के प्रति निष्ठा घोषित करें। 
  • सैनिक देशवासियों पर गोली चलाने से इनकार कर दें। छात्र स्कूल एवं कॉलेज तभी छोड़ेंगे जब तक वे इस निर्णय पर अंत तक डटे रहें। 
  • राजा, महाराजा भी आंदोलन में भाग ले, तथा जनता की प्रभुसत्ता को स्वीकार करें।  
भारत छोड़ो आंदोलन
भारत छोड़ो आंदोलन

भारत छोड़ो आंदोलन में बिहार की भूमिका

>भारत छोड़ो आंदोलन में बिहार की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रही। 8 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित होते ही कांग्रेस के अधिकतर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इस गिरफ्तारी के बाद संपूर्ण देश में आंदोलन तीव्र हो गया।

>9 अगस्त 1942 को राजेंद्र प्रसाद को गिरफ्तारी कर बांकीपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया।

>राजेंद्र प्रसाद की गिरफ्तारी का छात्रों द्वारा प्रबल विरोध किया गया। सभी शैक्षणिक केंद्रों पर हड़ताल रही इसी क्रम में 11 अगस्त को विद्यार्थियों के एक जुलूस ने सचिवालय भवन पर झंडा फहराने का प्रयास किया। जिसमें पटना के जिला कलेक्टर डब्लू.जी.आर्चर के आदेश पर देशभक्त छात्रों पर गोली चलाई गई जिसमें सात छात्र मारे गए। इस पूरी घटना को “सचिवालय गोलीकांड” के नाम से जाना जाता है। 

>भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान “सचिवालय गोलीकांड” में शहीद छात्रों के नाम

-सतीश प्रसाद झा, उमाकांत सिन्हा,  देवीपद चौधरी, रामानंद सिंह, रामगोविंद सिंह, राजेंद्र सिंह तथा जगपति कुमार शहीद हुए।

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>अंग्रेजों द्वारा की गई इस दमनात्मक एवं कायरता पूर्ण कार्यवाही के बाद संपूर्ण बिहार ज्वलित हो उठा इस घटना के विरोध में प्रस्ताव पारित किया। गया जिसके अंतर्गत 12 अगस्त को पटना में पूर्ण हड़ताल रहा, लोग हिंसक हो गए, ब्रिटिश अधिकारियों को मारा गया, पूरे बिहार में रेल की पटरियां उखाड़ दी गई, संचार के साधन जैसे टेलीफोन एवं तार सेवाओं को ठप कर दिया गया, डाकघर, रेलवे स्टेशन, थाना एवं सरकारी इमारतों में आगजनी की गई सरकार द्वारा भी आंदोलन को दबाने का प्रयास किया गया।

>मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मीनापुर, भोजपुर, गया,अरवल, पटना, शाहाबाद, पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, मुंगेर आदि क्षेत्रों में कई हिंसात्मक घटनाएं घटीं। 

>किसानों एवं महिलाओं ने भी इस आंदोलन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। छपरा में शांति देवी के नेतृत्व में जुलूस निकाला गया किंतु जब पुलिस द्वारा लाठीचार्ज की कोशिश की गई महिलाओं ने नारा दिया की पुलिस हमारा भाई है इस नारे से भारतीय सिपाहियों ने लाठीचार्ज करने से इंकार कर दिया

>बिहार में करीब 15,000 से अधिक लोगों को बंदी बनाया गया    

>इसी क्रम में 13 अगस्त 1942 को गया में जगन्नाथ मिश्र, श्री कैलाश राम तथा श्री मुई को गोली मार दी गई बक्सर के डुमरांव में आंदोलन को दबाने के प्रयास में  ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा कपिल मुनि, रामदास विश्वकर्मा, गोपाल कहार एवं बालेश्वर दुबे की गोली मारकर हत्या कर दी गई

>इस आंदोलन में सिवान के महराजगंज में 16 अगस्त को ध्वंसात्मक कमेटी का गठन किया गया। तथा इस कमेटी के द्वारा जुलूस का आयोजन किया गया जिसमें आंदोलनकारी महाराजगंज थाने पर झंडा फहराने के लिए पहुंचे। और झंडा फहराने के क्रम में फुलेना प्रसाद श्रीवास्तव, पुलिस की गोली लगने से शहीद हो गए तब फुलेना प्रसाद की पत्नी तारा रानी द्वारा थाना भवन पर झंडा फहराया गया।

>15 अगस्त 1942 को सीतामढ़ी के जुब्बा साहनी ने आंदोलनकारियों के साथ मिलकर मीनापुर थाने पर हमला किया, तब थानेदार बॉलर को जिंदा जला दिया गया। 

>मुंगेर में ‘आजाद हिंदुस्तान’ नामक एक समाचार पत्र प्रकाशित किया गया, जिसमें सरकारी दमन का विरोध किया गया। इसके जवाब में सरकार ने ‘मुंगेर न्यूज़’ नामक एक अखबार निकाला जिसमें सरकार की उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार किया गया।  

>इस आंदोलन के दौरान कटिहार में आंदोलनकारियों के जुलूस ने थाने का घेराव किया तथा रजिस्ट्री ऑफिस को जला दिया गया। इस घटना के विरोध में सरकार ने भीड़ पर गोलियां चलवाई। जिससे ध्रुव कुमार कुंडू,  कलानंद मंडल, रामाधार सिंह, दामोदर सिंह की मृत्यु हो गई।

>इस आंदोलन में छात्रों ने रेलगाड़ियों पर कब्जा कर अपने नियंत्रण में कर लिया एवं ट्रेन का नाम ‘स्वराज ट्रेन’ रखा। जिसके माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान जाकर आंदोलन का प्रचार-प्रसार किया गया। आंदोलन में ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई कार्यवाही के विरोध में बलदेव सहाय ने महाधिवक्ता के पद से त्यागपत्र दिया था।

>भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 1942 में ‘जयप्रकाश नारायण’ को गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में डाल दिया गया। लेकिन जयप्रकाश नारायण अपने चार साथियों सूर्य नारायण सिंह, योगेंद्र शुक्ल, शालिग्राम सिंह एवं गुलाली प्रसाद के साथ जेल से भाग निकले और नेपाल की तराई छेत्र में शरण ली। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में नेपाल में युवकों को छापामार युद्ध का प्रशिक्षण देने के लिए ‘आजाद दस्ता’ का गठन किया गया।

>आजाद दस्ता का मुख्य उद्देश्य सरकार के विरुद्ध तोड़फोड़ करना था। 1943 तक आजाद दस्ता सक्रिय रूप से आंदोलन करता रहा परंतु नेपाल सरकार के सहयोग से ब्रिटिश सरकार द्वारा जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, अरुणा आसफ अली, शालिग्राम जी को गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके बाद भारत छोड़ो आंदोलन में जयप्रकाश नारायण इस समय भूमिगत गतिविधियों में सक्रिय रहें।

“आजाद दस्ता”

♦आजाद दस्ता में दो तरह के दल तैयार किए गए थें। 

  1. गुप्त रूप से तोड़फोड़ करने वाला।
  2. व्यापक आंदोलन का अंग बनकर हिंसात्मक आंदोलन को आगे बढ़ाने वाला।

♦आजाद दस्तक के सदस्यों को तोड़फोड़ करने के लिए तीन तरह की कार्रवाइयों की शिक्षा दी जाती थी।

  1. औद्योगिक प्रतिष्ठानों को क्षति पहुँचाना। 
  2. यातायात के साधनों को क्षति पहुँचाना। 
  3. संचार के साधनों को नष्ट करना।

♦तोड़फोड़ करने के लिए 3 तरह के साधन थें। 

  1. साधारण तोड़फोड़ के लिए औजार का उपयोग करना। 
  2. अग्निकांड द्वारा सरकारी फाइलें आदि को नष्ट करना।
  3. रासायनिक पदार्थों तथा बारूद द्वारा विस्फोट कराकर उद्योग और कार्यालयों आदि को नष्ट करना।
निष्कर्ष 

‘भारत छोड़ो आंदोलन’ एक राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन था जिसके दौरान राष्ट्रवादियों ने कई जगह समानांतर सरकार की स्थापना की। तथा यह आंदोलन भारतीय जनता के आक्रोश का भी परिणाम था, जिसने सरकार को भारतीयों के प्रति अपना रवैया बदलने पर मजबूर कर दिया। भारत छोड़ो आंदोलन  देश की आजादी के लिए एक अंतिम राष्ट्रव्यापी आंदोलन साबित हुआ जो पूर्ण रूप से सफल रहा। 

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