दबाव समूह क्या है इसके लक्षण, कारण, साधन एवं तरीके, कार्य | What is Pressure Group? | 2023

इस लेख में हम दबाव समूह क्या है, इसके लक्षण, कारण, साधन एवं तरीके, कार्य कि विस्तार पूर्वक चर्चा करने जा रहे है, जो कि मेंस (Mains) परीक्षा के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है। हम उम्मीद करते हैं कि हमारे इस लेख से विद्यार्थियों में “दबाव समूह क्या है” और इससे जुड़े प्रश्नों को लेकर एक बेहतर समझ विकसित हो।

दबाव समूह क्या है ?

यदि हम बात करें कि दबाव समूह क्या है तो – दबाव समूह ऐसे लोगों का औपचारिक संगठन है, जिसका एक सामान्य उद्देश्य एवं स्वार्थ हो और जो घटनाओं के क्रम को विशेष रूप से शासन और सार्वजनिक नीति के निर्माण को इसलिए प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं, ताकि उनके अपने हितों की रक्षा और वृद्धि हो सके।

दबाव समूह के लक्षण

उद्देश्य के स्तर पर:-

दबाव समूह का उद्देश्य सीमित होता है यह सार्वजनिक हितों की उपेक्षा व्यक्तिगत हित पर ज्यादा ध्यान देते हैं।  साथ ही संबंधित हितों के पूरा हो जाने पर संबंधित दबाव समूह को बंद कर दिया जाता है या तो यह निर्जीव हो जाता है। 

सदस्यता के स्तर पर:-

क्योंकि इनके उद्देश सैनिक होते हैं इसलिए इसमें सदस्यों की संख्या सीमित होती है जो अपने समान हितों की पूर्ति के लिए लगातार कार्यरत रहते हैं। 

साधन के स्तर पर:-

दबाव समूह अपने हितों को प्राप्त करने हेतु संवैधानिक और असंवैधानिक जैसे संसाधनों का प्रयोग करते हैं।  जैसे धमकी देना, प्रलोभन देना, निर्वाचन के लिए धन देना आदि।  गौरतलब है कि इनके सदस्यों का मुख्य उद्देश्य अपने लक्ष्य को प्राप्त करना होता है चाहे तरीका कोई भी क्यों ना हो। 

उपस्थिति के स्तर पर:-

यह शासन के किसी भी रूप में शामिल नहीं होते हैं या न विधानमंडल न ही चुनाव में भाग लेते हैं।  परंतु वह लोग बाहर से ही इस को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। 

स्वरूप के स्तर पर:-

यह संगठित या असंगठित किसी भी प्रकार के हो सकते हैं। इनकी कार्यप्रणाली गुप्त व रहस्यमय में भी हो सकती है। 

वातावरण के स्तर पर:-

दबाव समूह के उद्देश्य के लिए पूंजीवादी तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था ज्यादा कारगर साबित है। चूँकि साम्यवादी व निरंकुशवादी  शासन व्यवस्था में इसकी उपस्थिति नगण्य होती है। 

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दबाव समूह के उदय के कारण

औद्योगिक विकास:-

वैश्विक स्तर पर लगातार बढ़ते औद्योगिक विकास ने लोगों को अपने हितों की रक्षा एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समूह का निर्माण करने का पर्याप्त वातावरण तैयार किया। 

कार्यों में वृद्धि:-

आज के वैश्विक परिदृश्य में राज्य की व्यापकता बहुत बढ़ गई है। यह न केवल राजनीतिक कार्य बल्कि सामाजिक, आर्थिक सभी पक्षों में लोगों को प्रभावित कर रहा है। स्वाभाविक है कि समान हितों की प्राप्ति हेतु लोगों द्वारा समूह बनाकर इन्हें अपने पक्ष में करने की कोशिश की जाती है। 

लोकतांत्रिक व्यवस्था:-

क्योंकि लोकतंत्र में सामाजिक न्याय एवं जनता के शासन की बात की जाती है। परंतु आंशिक तौर पर देखा जाए तो यहां भी लोगों का स्वार्थ केंद्र बिंदु में रहता है। 

राजनीतिक दल:-

विभिन्न राजनीतिक दल शासन प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक हितों की बात करते हैं। वह किसी विशिष्ट वर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते जिसके चक्कर में किसी खास समुदाय के हित प्रभावित होते हैं तो इस परिवेश में दबाव समूह का पनपना स्वाभाविक ही है। 

प्रादेशिक निर्वाचन प्रणाली:-

चुनाव में लोग विभिन्न आधार पर मतदान करते हैं।  यह सिर्फ भौगोलिक ना होकर जाति, धर्म, संस्कृति में विभाजित होती है। स्वाभाविक है कि जहां व्यक्तियों के हितार्थ उपलब्ध हो वहां दबाव समूह की उपस्थिति होती हैं। 

दबाव समूह क्या है
दबाव समूह क्या है

दबाव समूह के साधन एवं तरीके

मजबूत संगठन:-

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो कोई भी दबाव समूह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु तभी सफल हो पाता है, जब उसके पास एक पर्याप्त एवं सक्षम संगठन हो और जो किसी भी विशिष्ट परिस्थिति में महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए तैयार रहे।

उदाहरणस्वरूप “एमनेस्टी इंटरनेशनल” – जो मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए विभिन्न राष्ट्रों पर दबाव बनाते रहती हैं। (“दबाव समूह क्या है”)

पत्र पत्रिकाएं:-

दबाव समूह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं  का प्रकाशन करते हैं। इसके माध्यम से वह अपने लिए जनमत तैयार करने का प्रयास करते हैं जिससे संबंधित राज्य/संस्था पर दबाव बनाया जा सके। 

जैसे विश्व हिंदू परिषद की “देवपुत्र” मासिक पत्रिका। 

सामूहिक प्रचार:-

अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु इनके द्वारा सामूहिक प्रचार प्रसार किया जाता है, इसके लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग किया जाता है। 

लॉबिंग:-

पश्चिमी दुनिया में यह काफी प्रसिद्ध है। संभवतः अमेरिका में दबाव समूह इस प्रक्रिया के माध्यम से अपने स्वार्थों को साधने का प्रयास करते हैं। 

जैसे – प्रौद्योगिकी से संबंधित दबाव समूह। 

        फार्मा से संबंधित दबाव समूह। 

        तेल एवं गैस से संबंधित दबाव इत्यादि। 

चुनाव:-

यद्यपि इन समूहों का चुनाव से कोई सीधा संबंध नहीं होता है परंतु या विभिन्न राजनीतिक दलों को सहयोग, पैसे मुहैया कराना , उनके पक्ष में प्रचार करना, कानूनी सहायता प्रदान करना आदि कार्य करके इसको प्रभावित करते हैं। 

जैसे – अखिल भारतीय श्रमिक संघ (AITUC) समाजवादी दल से,  कांग्रेस पार्टी से तथा भारतीय मजदूर संघ   भारतीय जनता पार्टी से संबंधित संगठन है जो दबाव समूह की भांति कार्य करती हैं।

न्यायालय द्वारा:-

आज दबाव समय अपने हितों के संरक्षण के लिए न्यायालय का सहारा लेते हैं यह मुकदमा पीआईएल के माध्यम से संबंधित मुद्दों पर दबाव बनाने के लिए न्यायालय में प्रवेश करते हैं जैसे आरक्षण वृद्धि रेप की घटनाएं आदिवासियों का अल्प संघ आंखों से संबंधित मुद्दा।

दबाव समूह के कार्य

वर्तमान परिदृश्य में  दबाव समूह इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं कि इन्हें विधानमंडल के पीछे विधानमंडल की संज्ञा दी जाती है। दबाव समूह के कार्यों को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:-

जनता की रक्षा:-

कल्याणकारी राज्य की स्थापना हेतु राज्यों के कार्यों का दायरा काफी बढ़ गया है। हालांकि शक्तियों का केंद्रीकरण हो रहा है जिससे शासन की तानाशाही प्रवृत्ति उजागर हो रही है। दबाव समूह ही एक ऐसा समूह है जो राज्य के तानाशाही पूर्ण रवैए से जनता की रक्षा करता है। जैसे – अमेरिका में नीग्रो को मतदान का अधिकार दिलाने में “दी नेशनल एसोसिएशन फॉर दी एडवांसमेंट ऑफ कलर्ड पीपल” ने काफी योगदान दिया। 

कानूनों को प्रभावित करने का प्रयास:-

जब कानूनों का सृजन होता है, तब यह दबाव समूह अत्यधिक सक्रिय होकर इन कानूनों को प्रभावित कर अपने पक्ष में करने का प्रयास करते हैं जिससे उनके हित पूरा हो सके। 

                                                  – आलमंड के अनुसार

“हित समूह व्यवस्थापिका में कानून निर्माण प्रक्रिया के महत्वपूर्ण अवसरों की तलाश में रहते हैं जिससे अधिक से अधिक दबाव डाला जा सके। ये वो अवसर है, जब व्यवस्थापिका की नीति का श्री गणेश होता है, उनको दोहराया जाता है, उन पर मतदान होता है और उचित निर्णय लिया जाता है।” 

सामंजस्य बनाना:-

दबाव समूह समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सेतु का कार्य करते हैं। समाज में व्याप्त असमानता को कम करने तथा एक वर्ग अपने हित दूसरे वर्ग ऊपर न लादे इसका ध्यान रखते हैं। विभिन्न वर्गों जैसे व्यापारी वर्ग, कृषक वर्ग, श्रमिक वर्ग, जातीय वर्ग अपने समूह के द्वारा अपना हित पूरा करने की कोशिश करते हैं तो स्वाभाविक है कि उनके हित आपस में टकराएंगे। इसी स्थिति में दबाव समूह इनके बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास करती है जिससे संतुलन बना रहे।

अधिकारियों पर निगरानी:-

दबाव समूह निगरानी के माध्यम से संतुलन बनाने का प्रयास करते हैं ताकि अधिकारी निरंकुश ना हो जाए तथा  वह अपने उत्तरदायित्व का सफलतापूर्वक निर्वहन करें। 

उम्मीदवारों के चयन में हस्तक्षेप:-

दबाव समूह, संबंधित क्षेत्र में अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अपने लिए सटीक उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। साथ ही जरूरत पड़ने पर उनके विरुद्ध सामुदायिक प्रचार का भी सहारा लेते हैं। 

निष्कर्ष

अंततः कहा जाए तो, वर्तमान परिदृश्य के हिसाब से दबाव समूह इतने महत्वपूर्ण हो चुके हैं कि उन्हें शासन निर्माता एवं तीसरे सदन की संज्ञा दी जाती है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। वस्तुतः इसके समन्वय व संतुलन का सिद्धांत इसे अपने आप में अनोखा बनाता है जो कि एक अदृश्य शक्ति के रूप में वैश्विक तानेबाने को सुरक्षित एवं संरक्षित करने के लिए समय की मांग है जिसे भुलाया नहीं जा सकता। (“दबाव समूह क्या है”)

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