इस निबंध (बेरोज़गारी निवारण में शिक्षा की भूमिका) को यूपीएससी मित्रा (UPSC MITRA) द्वारा आयोजित निबंध प्रतियोगिता में भाग लेने वाली एक प्रतियोगी नमरा रफ़त द्वारा लिखा गया है, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में तृतीया स्थान प्राप्त किया है।
बेरोज़गारी निवारण में शिक्षा की भूमिका
लोग कहते हैं बेरोज़गारी है समस्या भारी,
हर जगह हो रही है नौकरी की मारम मारी।
बेरोज़गारी के दर्द को बयााँ करती ये पंक्तियाँ बोल रही हों जैसे कि अब तो शिक्षित युवा भी बेरोज़गार हैं, एक-एक पद के लिए सैकड़ों उम्मीदवार हैं।
बेरोजगारी क्या है?
बेरोजगारी से तात्पर्य उस स्थिति से है जिसमें कुशल एवं प्रतिभाशाली लोग नौकरी करना चाहते हैं। परंतु कई कारणों से उन्हें उचित नौकरी नहीं मिल पाती है।
बेरोज़गारी आज भारत की ही नहीं वरन् विश्व की सबसे बडी सामाजिक-आर्थिक समस्याओं में से एक है। भारत में इस समय करोड़ों लोग बेरोज़गारी का सामना कर रहे हैं। कार्य, अनुभव तथा आय की अनिश्चितता निर्धनता को जन्म देती हैं तथा इसके बाद निर्धनता और बेरोज़गारी का यह दुष्चक्र सदा चलता रहता है।
बेहतर अवसरों की तलाश में युवा गांव, प्रदेश अथवा देश से पलायन करते रहते हैं। ऐसे पलायन के फलस्वरूप उनका शोषण किए जाने का संकट बना रहता है। बेरोज़गारी की अधिकता राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की प्रगति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। ऐसे में बेरोज़गारी निवारण में शिक्षा की भूमिका काफी बढ़ जाती है।
बेरोजगारी के प्रकार
अब हम जानते हैं कि बेरोजगारी क्या है लेकिन बेरोजगारी का मतलब केवल यह नहीं है कि एक व्यक्ति के पास नौकरी/रोज़गार नहीं है। बल्कि बेरोज़गारी में अपनी विशेषज्ञता से बाहर के क्षेत्र में काम करने वाले लोग भी शामिल हैं।
बेरोजगारी के विभिन्न प्रकारों में शामिल हैं:
- प्रच्छन्न बेरोजगारी,
- मौसमी बेरोजगारी,
- खुली बेरोजगारी,
- तकनीकी बेरोजगारी,
- संरचनात्मक बेरोजगारी शामिल हैं।
इसके अलावा, कुछ अन्य बेरोजगारी जैसे:
- चक्रीय बेरोज़गारी,
- शिक्षित बेरोज़गारी,
- अल्प रोजगार,
- घर्षणात्मक बेरोजगारी,
- दीर्घकालिक बेरोज़गारी
- आकस्मिक बेरोज़गारी हैं।
- सबसे बढ़कर, मौसमी, अल्प और छिपी हुई बेरोज़गारी भारत में पाई जाने वाली सबसे आम बेरोज़गारी है।
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युवाओं में बेरोज़गारी का मूल कारण
युवाओं में बेरोज़गारी का मूल कारण अशिक्षा तथा रोज़गारपरक कौशल की कमी है। बेरोज़गारी व निर्धनता के निवारण का सबसे सशक्त माध्यम शिक्षा ही है। शिक्षा व्यापक अर्थों में लगभग हर सामाजिक-आर्थिक समस्या का समाधान बन सकती है, परंतु बेरोज़गारी निवारण में शिक्षा की भूमिका अतुलनीय है।
यदि भारत में शिक्षा तंत्र को जड़ से लेकर उच्चतम स्तर तक सशक्त बना दिया जाए तो इस समस्या का हल ढूंढना बेहद आसान हो जाएगा। यह ध्यान देने योग्य है कि प्राथमिक स्तर पर अवधारणा विकास तथा उच्च स्तरों पर रोज़गारपक कौशल विकास आधारित शिक्षा को विकसित किया जाए।
शिक्षा बेरोज़गारी दूर करने का लगभग अकेला माध्यम है, परंतु यह भी सुनिश्चित व विनियमित किया जाना आवश्यक है कि कितने लोगों को गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान की जा रही है तथा शिक्षा प्राप्ति के बाद उनकी रोज़गार तक पहुंच सुनिश्चित हो पाती है या नहीं।
शिक्षित बेरोज़गारी की समस्या उत्पन्न होने पर यह स्थिति राष्ट्र व अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी नहीं मानी जाती। भारत वर्तमान में इस समस्या से ग्रस्त है। ऐसे में आगे बढ़ने के लिए अशिक्षितों को शिक्षा तथा शिक्षितों को उनकी क्षमता के अनुरूप रोज़गार दिलाने हेतु पर्याप्त प्रयास किये जाने चाहिए।
वर्तमान भूमंडलीकरण के दौर में शिक्षा व्यवस्था का स्वरूप कैसा हो तथा आधारभूत संरचनात्मक संसाधनों की प्रकृति कैसी हो? यह एक विवाद का विषय है। देखा जाता है कि सरकारी प्राइमरी स्कूलों में कक्षा पाँच के छात्रों के पास न्यूनतम सामान्य ज्ञान भी नहीं होता।
इस तरह से प्राथमिक स्तर पर ही असमान शिक्षा प्रणाली दो भिन्न मानसिक स्तर एवं योग्यता वाले छात्रों को जन्म देती है, जिन्हें रोज़गार प्राप्त करने हेतु भविष्य में एक ही प्रतियोगी परीक्षा में प्रतिस्पर्द्धी बनना पड़ता है।
सरकारी हाईस्कूल व इंटर कॉलेजों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम व उनमें पढ़ाने वाले अध्यापकों की योग्यता भी वर्तमान समय की मांग अनुरूप नहीं है। वहीं दूसरी तरफ सीबीएसई (सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ सेकेंडरी एजुकेशन) व आईसीएसई (इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ़ सेकेंडरी एजुकेशन ) जैसे केंद्रीय बोर्डों से निकलने वाले छात्र अपेक्षित रूप से राज्य बोर्ड के छात्रों से कुशल व भिन्न सोच वाले होते हैं।
इस तरह माध्यमिक स्तर पर भी असमान प्रतिभा व योग्यता वाले छात्रों का एक वर्ग तैयार हो जाता है। किसी कवि ने सच ही कहा हैं कि:-पढ़-पढ़ पोथी हो गए, सभी परीक्षा पास।
रोजगार मिलता नहीं, टूटी जीवन आस।।
उपाधियां तो मिल गई, नहीं मिला है काम।
मिल तो जाती नौकरी, दे पाते गर दाम।।
ऐसे में आवश्यक है कि प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च स्तर तक एक समान शिक्षा प्रणाली लागू की जाए। स्कूलों के विभिन्न स्तरों को समाप्त कर एक समान स्कूल प्रणाली अगर लागू कर दी जाए तो गरीब व अमीर परिवार दोनों के बच्चों की मानसिक योग्यता एक प्रकार की होगी।
शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने वाले अध्यापकों के लिए निरंतर मूल्यांकन प्रक्रिया का होना बहुत आवश्यक है। इसके अलावा शिक्षण संस्थानों को अत्याधुनिक संसाधनों जैसे – कंप्यूटर, प्रोजेक्टर, वाई-फाई सुविधाओं से भी सुसज्जित होना चाहिए।
शिक्षा समाज में आमूलचूल परिवर्तन लाने में सक्षम अस्त्र है, परंतु उसे कारगर बनाने हेतु उसका कुशल संचालन तथा लक्ष्य तय करना आवश्यक है। शिक्षा को रोज़गार से जोड़कर बेरोज़गारी एवं अन्य कई सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का हल निकाला जा सकता है। अर्थात बेरोज़गारी निवारण में शिक्षा की भूमिका काफी अहम है।
घर की दीवार भी अब टूट कर मुुँह चिढ़ा रही,
बेरोज़गारी के जश्न में सबको शरीक होना था।
बेरोज़गारी के दर्द को बयााँ करती ये पंक्तियाँ बोल रही हों जैसे कि अब तो घर की दीवारों को भी इंतजार है, अगली पीढ़ी के रोज़गार का।
निष्कर्ष
सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बावजूद, भारत गंभीर बेरोज़गारी की समस्याओं का सामना करने वाला देश बना हुआ है। इसका समाधान इस प्रकार कि शिक्षा प्रदान करके किया जा सकता है, जिससे युवाओं को आवश्यक कौशल प्राप्त हो ताकि वे आसानी से रोजगार प्राप्त कर सकें।
स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों के लिए विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षण और व्यावसायिक पाठ्यक्रम लागू करने से युवाओं को रोजगार खोजने में मदद मिलेगी। सरकार को प्राथमिक स्तर पर इन पाठ्यक्रमों पर जोर देने और छात्रों को उनके जीवन के शुरुआती चरणों में कुशल बनाने के लिए उन्हें पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाने की आवश्यकता है।
स्कूलों और कॉलेजों में करियर काउंसलिंग प्रदान की जानी चाहिए ताकि छात्र अपनी रुचि और क्षमता के आधार पर बेहतर करियर विकल्प चुन सकें। सरकार को युवाओं और स्नातकों के लिए नौकरी के अनेक अवसर प्रदान करने चाहिए। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि “बेरोज़गारी निवारण में शिक्षा” की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।
बेरोज़गारी ने जीवन को कर दिया बर्बाद,
नशे की लत में डूब गया आज का समाज,
रोजगार की चिंता में रहता है दिल दिमाग,
कैसे आएगा घर में भरपूर अनाज।।